Thursday, 17 October 2019

अब और क्या बचा है? मौज-मस्ती ही करनी है .....

अब और क्या बचा है? मौज-मस्ती ही करनी है .....
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पिछले सात-आठ वर्षों से जैसी भी मुझे भगवान से प्रेरणा मिलती रहती, वैसा ही नित्य कुछ न कुछ लिखता ही रहता था| खुद का दिमाग तो कभी लगाया ही नहीं, सिर्फ हृदय की ही बात सुनता रहा| जो बात हृदय कह देता, उसे वैसी की वैसी ही लिख देता| अधिकांशतः तो प्रेरणा मुझे हृदय में बिराजमान भगवान वासुदेव से ही मिलती| दिमाग तो अब खालीस्थान है, जहाँ कुछ भी नहीं बचा है, पूरा बंजर हो गया है| हृदय भी एक बार भगवान को दिया था जो उन्होनें कभी बापस लौटाया ही नहीं, अपने पास ही रख लिया, अतः वह भी नहीं है| अपना कहने को कुछ भी नहीं है, सब कुछ श्रीहरिः ने छीन लिया है| सब कुछ था भी तो उन्हीं का, मैं तो उधार में मिली हुई चीज का जबर्दस्ती मालिक बना बैठा हुआ था| बहुत पहिले एक बार उनके समक्ष सिर झुकाया था जो फिर बापस कभी उठा ही नहीं, अभी तक झुका हुआ है|
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पता नहीं क्यों, दुनियाँ की मौज-मस्ती करना ही भूल गए| अब हृदय कहता कि खूब मौज-मस्ती की जाए| लिखने की प्रेरणा मिली तो लिखेंगे, बाकी समय अपनी मौज-मस्ती करेंगे| और कुछ नहीं करना है|
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इस संसार में मैं सबके साथ एक हूँ क्योंकि जो परमात्मा सब के हृदय में हैं, वे ही मेरे हृदय में हैं| अतः कहीं भी कोई फर्क नहीं है| अब हृदय की ही बात सुनेंगे, मन की नहीं| जो हृदय कहेगा वही करेंगे| किसी से कुछ लेना-देना नहीं है| एकमात्र संबंध ही अब सिर्फ भगवान से है| आप सब में व्यक्त उन भगवान वासुदेव को नमन ! वे ही मेरे परमशिव हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ सितंबर २०१९

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