गीत में भगवान कहते हैं .....
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
"अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||"
अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है| अनन्यदर्शी भक्त अपने लिये योग-क्षेम सम्बन्धी चिंता नहीं करते, क्योंकि उन के अवलंबन केवल भगवान ही हैं| जीवन और मृत्यु में भी उनकी वासना नहीं रहती| ऐसे भक्तों के योग-क्षेम का वहन स्वयं भगवान् ही करते हैं| अनन्यभाव से युक्त होकर भगवान वासुदेव की हम आत्मरूप से निरन्तर निष्काम उपासना करें| जब उनको सब भार दे दिया है तब चिंता काहे की?
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
"अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||"
अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है| अनन्यदर्शी भक्त अपने लिये योग-क्षेम सम्बन्धी चिंता नहीं करते, क्योंकि उन के अवलंबन केवल भगवान ही हैं| जीवन और मृत्यु में भी उनकी वासना नहीं रहती| ऐसे भक्तों के योग-क्षेम का वहन स्वयं भगवान् ही करते हैं| अनन्यभाव से युक्त होकर भगवान वासुदेव की हम आत्मरूप से निरन्तर निष्काम उपासना करें| जब उनको सब भार दे दिया है तब चिंता काहे की?
"दीनदयाल सुनी जबतें, तब तें हिय में कुछ ऐसी बसी है|
तेरो कहाय के जाऊँ कहाँ मैं, तेरे हित की पट खैंचि कसी है||
तेरोइ एक भरोसो मलूक को, तेरे समान न दूजो जसी है|
ए हो मुरारि पुकारि कहौं अब, मेरी हँसी नहीं तेरी हँसी है||"
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
१० सितंबर २०१९
तेरो कहाय के जाऊँ कहाँ मैं, तेरे हित की पट खैंचि कसी है||
तेरोइ एक भरोसो मलूक को, तेरे समान न दूजो जसी है|
ए हो मुरारि पुकारि कहौं अब, मेरी हँसी नहीं तेरी हँसी है||"
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवाते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
१० सितंबर २०१९
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