Thursday, 17 October 2019

शिखा की आवश्यकता .....

शिखा की आवश्यकता .....
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आज से साठ वर्षों पूर्व तक भारत के सब हिन्दू और चीन के प्रायः सभी लोग चोटी रखते थे| भारत के प्राचीन काल में तो सभी पुरुष चोटी रखते थे| चीन के कई प्राचीन चित्र मैनें देखे हैं, एक भी आदमी बिना चोटी के नहीं दिखाई दिया| कोई गंजा हो तो बात दूसरी है|
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खोपड़ी के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में मेरुशीर्ष और अंग्रेजी में Medulla Oblongata कहते हैं| यह देह का सबसे अधिक संवेदनशील भाग है| मेरुदंड की सब शिराएँ यहाँ मस्तिष्क से जुडती हैं| इस भाग की कोई शल्य क्रिया नहीं हो सकती| जीवात्मा का निवास भी यहीं होता है| देह में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवेश यहीं से होता है| यहीं पर आज्ञा चक्र है जहाँ पर प्रकट हुई कूटस्थ-ज्योति का प्रतिविम्ब भ्रू-मध्य में होता है| योगियों को नाद की ध्वनि भी यहीं सुनती है|
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देह का यह भाग ग्राहक यंत्र (Receiver) का काम करता है| शिखा सचमुच में ही Receiving Antenna का कार्य करती है| गहरे ध्यान के पश्चात् आरम्भ में योनीमुद्रा में कूटस्थ-ज्योति के दर्शन यहाँ पर होते हैं| वह ज्योति कुछ काल के उपरांत आज्ञा-चक्र और सहस्त्रार के मध्य में या सहस्त्रार के ऊपर नीले और स्वर्णिम आवरण के मध्य श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में दिखाई देती है| योगी इसी ज्योति व पञ्चकोणीय नक्षत्र का ध्यान कराते हैं| यह नक्षत्र पंचमुखी महादेव है|
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मेरुदंड व मस्तिष्क के अन्य चक्रों (मेरुदंड में मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत और विशुद्धि, व मस्तिष्क में आज्ञा और सहस्त्रार, व सहस्त्रार के भीतर --- ज्येष्ठा, वामा और रौद्री ग्रंथियों व श्री बिंदु को ऊर्जा यहीं से वितरित होती है| शिखा धारण करने से यह भाग अधिक संवेदनशील हो जाता है| भारत में जो लोग शिखा रखते थे वे मेधावी होते थे| अतः शिखा धारण की परम्परा भारत के हिन्दुओं में है|
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संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मन्त्र या शिखाबंधन के मन्त्र के साथ शिखा बंधन का विधान है| यह एक संकल्प और प्रार्थना है| किसी भी साधना से पूर्व, शिखाबंधन, मन्त्र के साथ होता है| यह एक हिन्दू परम्परा है| इसके पीछे यदि और भी कोई वैज्ञानिकता है तो उसका बोध गहन ध्यान में माँ भगवती की कृपा से ही हो सकता है| इससे अधिक का मुझे कोई ज्ञान नहीं है| आप सब को नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१९ सितंबर २०१५

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