गीता भारत का प्राण है| गीता ने भारत को जीवित रखा है| गीता का एक एक
शब्द जीवंत है| नीचे के तीन श्लोक गीता के कर्मयोग का सार हैं| यह संसार भी
ऐक युद्धभूमि यानि कर्मभूमि है| यहाँ युद्ध करने का भावार्थ अपने कर्म
निष्ठापूर्वक करने से है|
भगवान कहते हैं .....
"मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा| निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः||३:३०||"
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः| श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः||३ ३१||"
"ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् | सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ||३:३२||"
भगवान कहते हैं .....
"मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा| निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः||३:३०||"
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः| श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽति कर्मभिः||३ ३१||"
"ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् | सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ||३:३२||"
भावार्थ : अत: हे अर्जुन! अपने सभी प्रकार के कर्तव्य-कर्मों को मुझमें
समर्पित करके पूर्ण आत्म-ज्ञान से युक्त होकर, आशा, ममता, और सन्ताप का
पूर्ण रूप से त्याग करके युद्ध कर ||
जो मनुष्य मेरे इन आदेशों का ईर्ष्या-रहित होकर, श्रद्धा-पूर्वक अपना कर्तव्य समझ कर नियमित रूप से पालन करते हैं, वे सभी कर्मफ़लों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं ||
परन्तु जो मनुष्य ईर्ष्यावश इन आदेशों का नियमित रूप से पालन नही करते हैं, उन्हे सभी प्रकार के ज्ञान में पूर्ण रूप से भ्रमित और सब ओर से नष्ट-भ्रष्ट हुआ ही समझना चाहिये||
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
जो मनुष्य मेरे इन आदेशों का ईर्ष्या-रहित होकर, श्रद्धा-पूर्वक अपना कर्तव्य समझ कर नियमित रूप से पालन करते हैं, वे सभी कर्मफ़लों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं ||
परन्तु जो मनुष्य ईर्ष्यावश इन आदेशों का नियमित रूप से पालन नही करते हैं, उन्हे सभी प्रकार के ज्ञान में पूर्ण रूप से भ्रमित और सब ओर से नष्ट-भ्रष्ट हुआ ही समझना चाहिये||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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