हमारा सब से बड़ा धन "श्रद्धा" और "विश्वास" का धन है ....
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जीत हमारी निश्चित है| हमारे साथ परमात्मा हैं| उन्होने हमें स्वयं को दिया है| हम विफल हो ही नहीं सकते| असत्य और अंधकार की शक्तियों ने हमारे भीतर हीनभाव उत्पन्न किया है जो मिथ्या है| ये असत्य और अंधकार शाश्वत नहीं हैं| शाश्वत तो हमारे परमप्रिय परमात्मा हैं जो हमारे साथ एक हैं, अतः स्वयं में हमारी श्रद्धा और विश्वास भी शाश्वत है|
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जिन लोगों ने या जिन परिस्थितियों ने मेरे भीतर हीनता का बोध उत्पन्न किया है उन्हें मैं विष की तरह त्याग रहा हूँ| अपनी श्रद्धा और विश्वास से मैं अश्रद्धा और अविश्वास पर विजय प्राप्त कर रहा हूँ| परमात्मा से जुड़कर मैं स्वयं ज्योतिषांज्योति हूँ| स्वयं से अतिरिक्त किसी की भी या किसी से भी अब मुझे कोई अपेक्षा नहीं है| ब्रह्म-तत्व सचेतन रूप से मेरे चारों ओर व्याप्त है| उसके साथ मैं एक हूँ, वही मेरा साधन और साध्य है, साधक भी वही है| उससे मैं कभी विमुख न होऊं| वही मेरा धन और संपत्ति है| मेरे पास और कुछ भी नहीं है|
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गुरुकृपा से ब्रह्म-तत्व के रूप में परमात्मा मेरे समक्ष हैं| अभी और इसी समय हैं| वे ही मेरा जीवन हैं, वे ही मेरे प्राण हैं| अपने स्वयं के हृदय-कमल में विराजमान माँ भगवती को मैं प्रणाम करता हूँ| उन की प्रेमदृष्टि निरंतर मुझ अकिंचन पर बनी रहे| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९
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जीत हमारी निश्चित है| हमारे साथ परमात्मा हैं| उन्होने हमें स्वयं को दिया है| हम विफल हो ही नहीं सकते| असत्य और अंधकार की शक्तियों ने हमारे भीतर हीनभाव उत्पन्न किया है जो मिथ्या है| ये असत्य और अंधकार शाश्वत नहीं हैं| शाश्वत तो हमारे परमप्रिय परमात्मा हैं जो हमारे साथ एक हैं, अतः स्वयं में हमारी श्रद्धा और विश्वास भी शाश्वत है|
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जिन लोगों ने या जिन परिस्थितियों ने मेरे भीतर हीनता का बोध उत्पन्न किया है उन्हें मैं विष की तरह त्याग रहा हूँ| अपनी श्रद्धा और विश्वास से मैं अश्रद्धा और अविश्वास पर विजय प्राप्त कर रहा हूँ| परमात्मा से जुड़कर मैं स्वयं ज्योतिषांज्योति हूँ| स्वयं से अतिरिक्त किसी की भी या किसी से भी अब मुझे कोई अपेक्षा नहीं है| ब्रह्म-तत्व सचेतन रूप से मेरे चारों ओर व्याप्त है| उसके साथ मैं एक हूँ, वही मेरा साधन और साध्य है, साधक भी वही है| उससे मैं कभी विमुख न होऊं| वही मेरा धन और संपत्ति है| मेरे पास और कुछ भी नहीं है|
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गुरुकृपा से ब्रह्म-तत्व के रूप में परमात्मा मेरे समक्ष हैं| अभी और इसी समय हैं| वे ही मेरा जीवन हैं, वे ही मेरे प्राण हैं| अपने स्वयं के हृदय-कमल में विराजमान माँ भगवती को मैं प्रणाम करता हूँ| उन की प्रेमदृष्टि निरंतर मुझ अकिंचन पर बनी रहे| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९
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