जगन्माता की उपासना .....
परमात्मा की मातृरूप में भी उपासना भारतवर्ष की ही देन है| जगन्माता की आराधना भारतवर्ष में अनेक उग्र व अनेक सौम्य रूपों में की जाती है| जिस व्यक्ति का जैसा स्वभाव है, उसी के अनुकूल वह जगन्माता की आराधना कर सकता है|
एक बार मुझे गहन प्रेरणा मिली परमात्मा के सौम्य मातृरूप की उपासना करने की| संत तुलसीदास ने रामचरितमानस के आरंभ में भगवती सीता की वंदना जिन शब्दों में की है, उन्होनें मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया ...
"उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्| सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम्||"
उपरोक्त मंत्र बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है, जो वास्तव में सब तरह के क्लेशों को दूर करता है| युवावस्था में भगवती सीता जी का ध्यान मुझे बहुत प्रिय था|
भारत में श्रीराधा जी की आराधना अनेक संप्रदायों में बहुत अधिक लोकप्रिय है, विशेषकर वृंदावन क्षेत्र में|
शक्ति साधनाओं में श्री ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र, आध्यात्मिक और काव्यात्मक दृष्टि से मुझे सर्वश्रेष्ठ लगा| कई वर्षों तक मैं नित्य प्रातः श्री ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनता था और ध्यान करता था| पारिवारिक संस्कारों के कारण संस्कृत भाषा के स्तोत्रों को समझने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई|
बाद में जब गुरुकृपा से चैतन्य के विस्तार की और सर्वव्यापी अनंत आकाश तत्व व घनीभूत प्राण शक्ति की अनुभूतियाँ होने लगीं तब से सम्पूर्ण अस्तित्व ही मातृमय व परमशिवमय हो गया|
परमात्मा की मातृरूप में भी उपासना भारतवर्ष की ही देन है| जगन्माता की आराधना भारतवर्ष में अनेक उग्र व अनेक सौम्य रूपों में की जाती है| जिस व्यक्ति का जैसा स्वभाव है, उसी के अनुकूल वह जगन्माता की आराधना कर सकता है|
एक बार मुझे गहन प्रेरणा मिली परमात्मा के सौम्य मातृरूप की उपासना करने की| संत तुलसीदास ने रामचरितमानस के आरंभ में भगवती सीता की वंदना जिन शब्दों में की है, उन्होनें मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया ...
"उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्| सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम्||"
उपरोक्त मंत्र बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है, जो वास्तव में सब तरह के क्लेशों को दूर करता है| युवावस्था में भगवती सीता जी का ध्यान मुझे बहुत प्रिय था|
भारत में श्रीराधा जी की आराधना अनेक संप्रदायों में बहुत अधिक लोकप्रिय है, विशेषकर वृंदावन क्षेत्र में|
शक्ति साधनाओं में श्री ललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र, आध्यात्मिक और काव्यात्मक दृष्टि से मुझे सर्वश्रेष्ठ लगा| कई वर्षों तक मैं नित्य प्रातः श्री ललिता सहस्त्रनाम का पाठ सुनता था और ध्यान करता था| पारिवारिक संस्कारों के कारण संस्कृत भाषा के स्तोत्रों को समझने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई|
बाद में जब गुरुकृपा से चैतन्य के विस्तार की और सर्वव्यापी अनंत आकाश तत्व व घनीभूत प्राण शक्ति की अनुभूतियाँ होने लगीं तब से सम्पूर्ण अस्तित्व ही मातृमय व परमशिवमय हो गया|
भगवान हमारे पिता भी हैं, माता भी हैं और सर्वस्व हैं| उनका जो भी रूप
हमें प्रिय लगता है, उसी रूप में उपासक के समक्ष वे स्वयं की अनुभूति करा
देते हैं| पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण उनके प्रति "परमप्रेम" है जिसे भक्ति
सूत्रों में "भक्ति" कहा गया है| भक्ति के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़
सकते| अतः ऐसे वातावरण और संगति में ही रहें जिसमें भक्ति का निरंतर विकास
हो|
रामचरितमानस और भगवद्गीता दोनों ही ज्ञान व भक्ति के ग्रंथ हैं| भगवद्गीता में तो मुझे भक्ति और ज्ञान के सिवाय अन्य कुछ भी दिखाई नहीं देता| सर्वव्यापी भगवान वासुदेव की अनत कृपा हम सब पर निरंतर है|
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव|
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव||"
आप ही माता हैं , आप ही पिता हैं , आप ही बंधु हैं और आप ही सखा हैं| आप ही विद्या है और आप ही धन हैं , हे देव आप मेरे सर्वस्व हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ सितंबर २०१९
रामचरितमानस और भगवद्गीता दोनों ही ज्ञान व भक्ति के ग्रंथ हैं| भगवद्गीता में तो मुझे भक्ति और ज्ञान के सिवाय अन्य कुछ भी दिखाई नहीं देता| सर्वव्यापी भगवान वासुदेव की अनत कृपा हम सब पर निरंतर है|
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव|
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव||"
आप ही माता हैं , आप ही पिता हैं , आप ही बंधु हैं और आप ही सखा हैं| आप ही विद्या है और आप ही धन हैं , हे देव आप मेरे सर्वस्व हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ सितंबर २०१९
No comments:
Post a Comment