भगवान को सिर्फ हमारा प्रेम चाहिए .....
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कोई भी माता-पिता अपने पुत्र के बिना सुखी नहीं रह सकते| भगवान हमारे माता-पिता और सर्वस्व हैं| यदि हम उनके बिना सुखी नहीं है तो वे भी हमारे बिना सुखी नहीं रह सकते| जितनी पीड़ा हमें उनसे वियोग की है, उससे अधिक पीड़ा उनको भी है| वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते| एक न एक दिन तो वे स्वयं को व्यक्त करेंगे ही|
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वास्तव में यह संसार एक विचित्र लीला है जिसे समझना हमारी बुद्धि से परे है| सब प्राणी परमात्मा के ही अंश हैं, और परमात्मा ही कर्ता हैं| हमारा भी एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है| स्वयं परमात्मा ही विभिन्न रूपों में एक-दूसरे से मिलते रहते हैं| उनके सिवाय अन्य कोई नहीं है| वे सब कर्मफलों से परे हैं, अपनी संतानों के माध्यम से वे ही कर्मफलों को भी भुगत रहे हैं| हम अपने अहंकार और ममत्व के कारण ही कष्ट पाते हैं| माया के बंधन शाश्वत नहीं हैं, उनकी कृपा से एक न एक दिन वे भी टूट जायेंगे| वे आशुतोष हैं, प्रेम और कृपा करना उनका स्वभाव है| वे अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते|
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परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है ..... हमारा प्रेम| कभी न कभी तो हमारे प्रेम में भी पूर्णता आएगी, और कृपा कर के हमसे वे हमारा समर्पण भी करवा लेंगे| क्या अपने माँ-बाप से मिलने के लिए कोई प्रार्थना करनी पडती है? अब तो प्रार्थना करना फालतू सी बात लगती है| माता-पिता से मिलना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| फिर भी हम इतना तो कह ही सकते हैं कि हे परम प्रिय, हमारे प्रेम में पूर्णता दो, हमारी कमियों को दूर करो| अज्ञानता में किये गए कर्मफलों से मुक्त करो|
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वेदांत की दृष्टी से तो हम यह देह नहीं बल्कि परमात्मा की पूर्णता हैं| उस चेतना में हम यह कह सकते हैं कि एकमात्र "मैं" ही हूँ, मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई अन्य नहीं है, सब प्राणी मेरे ही प्रतिविम्ब हैं, मैं विभिन्न रूपों में स्वयं से ही मिलता रहता हूँ, मैं द्वैत भी हूँ और अद्वैत भी, मैं साकार भी हूँ और निराकार भी, एकमात्र अस्तित्व मेरा ही है| मैं ही परमशिव हूँ और मैं ही परमब्रह्म हूँ, यह देह नहीं|
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ईश्वर प्रदत्त विवेक हम सब को प्राप्त है| उस विवेक के प्रकाश में ही उचित निर्णय लेकर सारे कार्य करने चाहिएँ| वह विवेक ही हमें एक-दुसरे की पहिचान कराएगा और यह विवेक ही बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं| आप सब को नमन! आप मेरी ही निजात्मा हैं|
तत्वमसि | सोहं | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१५ सितम्बर २०१९
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कोई भी माता-पिता अपने पुत्र के बिना सुखी नहीं रह सकते| भगवान हमारे माता-पिता और सर्वस्व हैं| यदि हम उनके बिना सुखी नहीं है तो वे भी हमारे बिना सुखी नहीं रह सकते| जितनी पीड़ा हमें उनसे वियोग की है, उससे अधिक पीड़ा उनको भी है| वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते| एक न एक दिन तो वे स्वयं को व्यक्त करेंगे ही|
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वास्तव में यह संसार एक विचित्र लीला है जिसे समझना हमारी बुद्धि से परे है| सब प्राणी परमात्मा के ही अंश हैं, और परमात्मा ही कर्ता हैं| हमारा भी एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है| स्वयं परमात्मा ही विभिन्न रूपों में एक-दूसरे से मिलते रहते हैं| उनके सिवाय अन्य कोई नहीं है| वे सब कर्मफलों से परे हैं, अपनी संतानों के माध्यम से वे ही कर्मफलों को भी भुगत रहे हैं| हम अपने अहंकार और ममत्व के कारण ही कष्ट पाते हैं| माया के बंधन शाश्वत नहीं हैं, उनकी कृपा से एक न एक दिन वे भी टूट जायेंगे| वे आशुतोष हैं, प्रेम और कृपा करना उनका स्वभाव है| वे अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जा सकते|
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परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है ..... हमारा प्रेम| कभी न कभी तो हमारे प्रेम में भी पूर्णता आएगी, और कृपा कर के हमसे वे हमारा समर्पण भी करवा लेंगे| क्या अपने माँ-बाप से मिलने के लिए कोई प्रार्थना करनी पडती है? अब तो प्रार्थना करना फालतू सी बात लगती है| माता-पिता से मिलना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| फिर भी हम इतना तो कह ही सकते हैं कि हे परम प्रिय, हमारे प्रेम में पूर्णता दो, हमारी कमियों को दूर करो| अज्ञानता में किये गए कर्मफलों से मुक्त करो|
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वेदांत की दृष्टी से तो हम यह देह नहीं बल्कि परमात्मा की पूर्णता हैं| उस चेतना में हम यह कह सकते हैं कि एकमात्र "मैं" ही हूँ, मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई अन्य नहीं है, सब प्राणी मेरे ही प्रतिविम्ब हैं, मैं विभिन्न रूपों में स्वयं से ही मिलता रहता हूँ, मैं द्वैत भी हूँ और अद्वैत भी, मैं साकार भी हूँ और निराकार भी, एकमात्र अस्तित्व मेरा ही है| मैं ही परमशिव हूँ और मैं ही परमब्रह्म हूँ, यह देह नहीं|
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ईश्वर प्रदत्त विवेक हम सब को प्राप्त है| उस विवेक के प्रकाश में ही उचित निर्णय लेकर सारे कार्य करने चाहिएँ| वह विवेक ही हमें एक-दुसरे की पहिचान कराएगा और यह विवेक ही बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं| आप सब को नमन! आप मेरी ही निजात्मा हैं|
तत्वमसि | सोहं | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१५ सितम्बर २०१९
पृथ्वी पर इस समय "शैतान" का राज्य बहुत लम्बे समय से चल रहा है| "शैतान" कोई व्यक्ति नहीं है, मनुष्य की "कामवासना", "लोभ" और "अहंकार" ही "शैतान" है| "परमात्मा" की परिकल्पना सिर्फ भारत की ही देन है, पर भारत में भी घोर "तमोगुण" के रूप में एक हजार वर्षों से "शैतान" ही राज्य कर रहा है| भारत में "जातिगत द्वेष", और "पारस्परिक जातिगत घृणा" .... "तमोगुण" की प्रधानता के कारण है| यह "तमोगुण" भी "शैतान" ही है|
ReplyDeleteमैं झूञ्झुणु (राजस्थान) में रहता हूँ जहाँ पूरे क्षेत्र में ही दुर्भाग्य से इतना भयंकर "जातिगत द्वेष" है कि दम घुटने सा लगता है| कई बार मुझे लगता है कि मैं गलत क्षेत्र में और गलत समाज में रह रहा हूँ| कहीं जाने का और किसी से मिलने का मन भी नहीं करता| जहाँ "तमोगुण" की प्रधानता है वहाँ "शैतान" ही राज्य करता है| यहाँ भी तमोगुण ही प्रधान है| सारे यही यही हाल है, कुछ नहीं कर सकते| सुख शांति और सुरक्षा परमात्मा में ही है|