Thursday, 17 October 2019

सभी को पीड़ा होती है और भावनायें भी सभी की आहत होती हैं ...

सभी को पीड़ा होती है और भावनायें भी सभी की आहत होती हैं ...
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जीवन में मुझे भी पीड़ा होती है, मेरी भी भावनाएँ आहत होती हैं| पर यह मेरे और परमात्मा के मध्य का मामला है, अतः किसी को नहीं कहता| कहने से कोई लाभ नहीं, हानि ही हानि है| चारों ओर हिंसा ही हिंसा देखता हूँ| हिंसा का कारण राग-द्वेष और अहंकार है| अहिंसा की सिद्धि वीतरागता व आत्मज्ञान से ही होती है| जिन भी परिस्थितियों में हम हैं उन परिस्थतियों में जो भी सर्वश्रेष्ठ कार्य हो सकता है वह करें| व्यर्थ की निंदा व आलोचना से कोई लाभ नहीं है| देश में अनेक सकारात्मक बहुत अच्छे अच्छे कार्य भी हो रहे हैं| अनेक व्यक्ति और अनेक संस्थाएँ दिन रात अच्छा कार्य भी कर रही हैं| उनके कार्य प्रकाश में नहीं आते क्योंकि जो ठोस धरातल पर काम करने वाले लोग हैं वे अपना प्रचार नहीं करते| यदि किसी को लगता है कि आसपास गलत काम हो रहा है तो अपनी क्षमतानुसार अच्छा काम भी करें| सिर्फ आलोचना और आत्मनिंदा से किसी समस्या का समाधान नहीं होता|
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मैं नित्य नियमित रूप से मंदिरों में जाने का पूर्ण समर्थक हूँ| नित्य कुछ समय के लिए मंदिर में अवश्य जाना चाहिए, इस से भक्तिभाव तो बना ही रहता है, भक्तों के दर्शन भी हो जाते हैं| आरती के समय मंदिर में जाना बहुत शुभ होता है| साधकों/भक्तों का एक आवासीय बस्ती बनाकर पास पास रहने का भी समर्थक हूँ| मेरा ऐसा सौभाग्य नहीं है, पर सत्य को तो सत्य ही कहूँगा| अकेले ध्यान साधना करने की अपेक्षा समूह में ध्यान करना अधिक फलदायी व अधिक सरल होता है| इस से एक-दूसरे के स्पंदन एक-दूसरे की सहायता करते हैं| एक ही साधना पद्धति के अनुयायियों द्वारा कम से कम सप्ताह में एक दिन तो एक निश्चित समय और निश्चित स्थान पर सत्संग और सामूहिक ध्यान साधना करनी ही चाहिए| अपनी आध्यात्मिक विचारधारा और साधना पद्धति के लोगों का हर नगर में एक समूह बनायें और हर सप्ताह नियमित सत्संग करे| हमारी रक्षा होगी|
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भगवान की कृपा के बिना कोई उनका नाम तक नहीं ले सकता| देखते देखते ही मेरे अनेक मित्र साधू-संत-भक्त बन गए, पर कई वहीं किनारे पर बैठे हैं| जीवन एक अनंत सतत प्रक्रिया है| हर संकल्प और हर अभीप्सा अवश्य पूर्ण होती है| आत्मा की अभीप्सा सिर्फ परमात्मा के लिए ही होती है, वह निश्चित ही कभी न कभी तो पूर्ण होगी ही| अभी तो किसी भी तरह की कोई अपेक्षा व कोई कामना नहीं है, न ही भगवान से कोई प्रार्थना है| जैसी हरिः इच्छा, वही मेरी इच्छा| पूर्वजन्मों की कुछ वासनाएँ अवशिष्ट थीं इसलिए यह जन्म लेना पड़ा| अब और कोई वासना न रहे| जन्म-मरण में कोई रुचि नहीं रही है| आत्मा की शाश्वतता में आस्था है|
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परमात्मा के साकार रूप आप सभी निजात्माओं को नमन ! आप सब के ह्रदय में परमात्मा का अहैतुकी परम प्रेम जागृत हो| सभी का कल्याण हो|.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !
कृपा शंकर
१७ सितम्बर २०१९

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