Thursday, 17 October 2019

क्या उपासना करें और क्या नहीं करें? ...

क्या उपासना करें और क्या नहीं करें? ...
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ज्ञान अनंत है| विद्यायें और अविद्यायें भी अनंत हैं| अनंत साधनायें हैं| पर यह मनुष्य जीवन अति अल्प और नश्वर है| इस सीमित और अत्यल्प मनुष्य जीवन में अपने उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या किया जाए और क्या नहीं?
महाभारत के यक्ष प्रश्नों के उत्तर में धर्मराज कहते हैं ...
"तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः||"

श्रीरामचरितमानस में भी कहा गया है ...
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई|"
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इनका उत्तर भी रामचरितमानस और महाभारत में मिल जाता है| गीता भी महाभारत का ही भाग है|
गीता में भगवान कहते हैं ...
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः||९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
रामचरितमानस में भगवान कहते हैं ....
"नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो| सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो||
करनधार सदगुर दृढ़ नावा| दुर्लभ साज सुलभ करि पावा||"
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सारे उत्तर तो भगवान ने स्वयं दे दिये हैं, हमें तो इन का अर्थ समझ कर उनका अनुशरण ही करना है| पर एक बात है कि बिना परमात्मा की कृपा के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते| उनकी कृपा भी तभी होगी जब हम उन्हें अपने हृदय का पूर्ण प्रेम दें और उन्हें समर्पित हों|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ सितंबर २०१९

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