Thursday, 17 October 2019

अब शब्दों का कोई महत्व नहीं रहा है, मंजिल सामने ही है .....

अब शब्दों का कोई महत्व नहीं रहा है, मंजिल सामने ही है .....
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एक अवस्था ऐसी भी आती है जहाँ शब्दों का कोई महत्व नहीं रह जाता और वाणी मौन हो जाती है| जब हम किसी अनजान गंतव्य की ओर जाते हैं तो साथ में एक मार्गदर्शिका और मानचित्र भी साथ ले जाते हैं, मार्ग में मिलने वाले पथिकों से पूछते भी रहते हैं, और मील के पत्थरों व निर्देशक संकेतों को भी देखते रहते हैं| पर एक बार जब गंतव्य सामने आ जाता है तब किसी भी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती, न किसी को पूछना पड़ता है, गंतव्य सामने ही तो है| तब सारे संदेहों व जिज्ञासाओं का समापन भी हो जाता है|
वैसे ही जैसे .....
यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवत्यात्मारामो भवति (नारद भक्तिसूत्र)||६||
परमात्मा से परम प्रेम होने पर मनुष्य .... उन्मत्त हो जाता है, फिर परमात्मा की उपस्थिति के आभास से स्तब्ध हो जाता है, और फिर अपनी आत्मा में रमण करते करते आत्माराम हो जाता है|
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अब परमात्मा को व्यक्त करने वाले शब्दों का कोई महत्व नहीं है| किसी से मैं पूछूँ कि चंद्रमा कहाँ है, तो वह अपनी अंगुली से दिखायेगा| एक बार चंद्रमा को देखने के पश्चात उस अंगुली का कोई महत्व नहीं रह जाता| अपनी मंजिल को देखने के पश्चात किसी मार्गदर्शिका या मानचित्र की भी आवश्यकता नहीं रहती| जब परमात्मा स्वयं हाथ थाम लेते हैं तब किन्हीं मार्गदर्शक की भी आवश्यकता नहीं रहती| मार्गदर्शज स्वयं परमात्मा हो जाते हैं| हम वह स्वयं बनें जो हमारे महान गुरु थे| अब हमें उनकी अंगुलियाँ पकड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब में मुझे परमात्मा के ही दर्शन होते हैं| आप सब को सादर दंडवत् प्रणाम!
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ सितंबर २०१९

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