ब्रह्मतत्व यानि परमात्मा को जानने का अधिकार सभी को है, केवल विरक्त व्यक्ति को ही नहीं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान अनेक बार यह बात कहते हैं। लेकिन इसके लिए परमप्रेम, अभीप्सा, शरणागति, समर्पण, स्वाध्याय, साधना व अध्यवसाय द्वारा पात्रता तो स्वयं को ही अर्जित करनी पड़ती है।
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जिसको प्यास लगी है वही पानी पीयेगा। किसी अन्य के पानी पीने से हमें तृप्ति नहीं मिलती। इस सृष्टि में कुछ भी निःशुल्क नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। जो लोग केवल बातें करते हैं, वे बातें ही करते रह जाते हैं। परमात्मा को पाने के लिए भी परमप्रेम (भक्ति) और समर्पण द्वारा कीमत सब को चुकानी पड़ती है।
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इस पृथ्वी पर कभी प्रलय आयेगी तो सबसे पहिले वे ही नष्ट होंगे जो अपना काम ठीक से नहीं करते, दूसरों को दुःखी करते हैं, और जिनकी दृष्टि पराये धन पर होती है। नर्काग्नि की भयावह दाहकता भी उनके लिए आरक्षित है। उन्हें कोई बचा नहीं सकता।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ मई २०२५
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