Sunday, 18 May 2025

वर्तमान तुर्की -- कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफ़ा कमाल पाशा (१८८१-१९३८) की नीतियों से दूर जा रहा है।

 वर्तमान तुर्की -- कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफ़ा कमाल पाशा (१८८१-१९३८) की नीतियों से दूर जा रहा है।

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यूरोप के ईसाईयों को मजहबी युद्धों में हराकर तुर्की के सुल्तान उस्मान प्रथम ने १३वीं सदी में अनातोलिया (तुर्की का वह भाग जो भूमध्य सागर में है) में उस्मान तुर्की साम्राज्य की स्थापना की, जो छह शताब्दियों तक विश्व का एक अति शक्तिशाली साम्राज्य रहा। सल्तनत-ए-उस्मानिया तुर्की की मुख्य भूमि से संचालित थी, जिसके आधीन --
अल्बानिया, बुल्गारिया, रोमानिया, ग्रीस, सर्बिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, इराक, सीरिया, लेबनान, मिस्र, इजराइल, फिलिस्तीन, सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कतर, बहरीन, यमन, लीबिया, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोरक्को, जॉर्जिया, आर्मेनिया, अजरबैजान जैसे बड़े बड़े २७ से अधिक प्रसिद्ध देश थे।
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प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर तुर्की को हरा कर इसके आधीन सभी देशों को स्वतंत्र कर दिया था। उस्मानिया सल्तनत के सुल्तान को खलीफा बोलते थे जो मुस्लिम उम्मा का प्रमुख होता था। अंतिम ३७ वाँ खलीफा सुल्तान अब्दुल मजीद (द्वितीय) फ्रांस के नीस नगर में एक शरणार्थी का जीवन जी रहा था। भारत के तथाकथित "राष्ट्रपिता महात्मा" ने तुर्की के इस अंतिम खलीफा को बापस अपनी गद्दी पर बैठाने के लिए "खिलाफ़त आंदोलन" आरंभ किया था। इसी आंदोलन ने पाकिस्तान की नींव डाली। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप केरल में मोपला मुसलमान इतने अधिक उत्तेजित हो गये कि अंग्रेजों का तो कुछ बिगाड़ नहीं पाये, लेकिन लाखों निरीह हिंदुओं की हत्या कर दी। विश्व के किसी भी इस्लामी देश ने इस खलीफे का समर्थन नहीं किया था।
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हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान सिद्दीकी की शादी तुर्की के अंतिम खलीफा अब्दुलमज़ीद (द्वितीय) की बड़ी बेटी शाहज़ादी दुर्रू शेहवार से हुई थी। उसका शाहज़ादा आजमजाह भी तुर्की के खलीफा खानदान की शाहजादी को व्याहा था, जो रिश्ते में उसकी मौसी भी लगती थी। जब ये लोग शादी कर के जलयान से भारत लौट रहे थे, तो उसी जलयान से मोहनदास गांधी भी यूरोप से भारत लौट रहे थे। वहीं उनकी दोस्ती हुई। कहीं पढ़ा था कि मोहनदास गांधी ने हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान पर अपना प्रभाव डाल कर अंतिम खलीफा अब्दुल मजीद को ३०० पाउंड महीने की आजीवन पेंशन भी बँधवा दी थी। हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान का पोता शाहज़ादा मुकर्रम जाह था जो जवाहर लाल नेहरू का घनिष्ठ मित्र था।
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अब आता हूँ असली विषय पर जिसे बताने के लिए यह लेख लिख रहा हूँ। मुस्तफा कमाल पाशा का पारिवारिक नाम मुस्तफा था। अपनी कक्षा में गणित का बहुत प्रखर विद्यार्थी होने के कारण उसे मुस्तफा कमाल पाशा का नाम दिया गया। वह एक दबंग विद्यार्थी था जिसने जीवन में कभी किसी से मार नहीं खायी। जरा जरा सी बात पर वह दूसरों की पिटायी कर देता था।
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फ्रांस और रूस की सहायता से उसने तुर्की की सत्ता अपने हाथ में ले ली। अंग्रेज उसके विरुद्ध थे लेकिन उनकी नहीं चली। सारे मुल्ला-मौलवी उसके विरुद्ध थे लेकिन उसने अपनी दबंगी स्वभाव से सब को डरा-धमका कर उनकी नहीं चलने दी। उसने मुस्लिम उम्मा के उस देश में बहुत बड़े अकल्पनीय सुधार किये जिनके कारण उसे कमाल-अतातुर्क कहा जाता है।
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सत्ता में आते ही उसने सर्वप्रथम महिलाओं द्वारा बुर्का पहिनने पर प्रतिबंध लगा दिया। पुलिस को उसका आदेश था कि कोई भी महिला बुर्का पहिने दिखायी दे तो उसे गोली मार दो। पुरुषों द्वारा पहनी जाने बाली फ़ैज़ टोपी भी उसने प्रतिबंधित कर दी। एक भी गोली नहीं चली, महिलाओं ने बुर्के और पुरुषों ने फ़ैज़ टोपियां अपने आप ही फेंक दी। अरबी भाषा के प्रयोग पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। उसका आदेश था कि तुर्की भाषा में लिखी कुरान ही पढ़ी जायेगी और मस्जिदों में अजान और तक़रीरें भी तुर्की भाषा में ही होगीं। अरबी भाषा का प्रयोग तुरंत बंद हो गया। उसका आदेश न मानने पर गोली मारने की ही सजा थी। किसी को गोली खाने का शौक नहीं था।
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मार्च १९२४ में कमाल ने खिलाफत प्रथा का अन्त किया और खलीफा को देश से भगा दिया। खलीफा जो पूरे मुस्लिम जगत का प्रमुख होता था, उसे उसके स्वयं के देश से भगाना कितना साहस का काम रहा होगा यह कल्पना कीजिये। उसने तुर्की को सेकुलर राष्ट्र घोषित करते हुए एक विधेयक संसद में रखा। अधिकांश संसद सदस्यों ने इसका विरोध किया, पर कमाल ने उन्हें जम के धमकाया। उसकी धमकी का प्रभाव पड़ा और सारे सांसदों ने कमाल को ही वोट दिये, व विधेयक पारित हो गया।
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मुल्ला-मौलवियों ने उसका बहुत विरोध किया लेकिन कमाल अतातुर्क ने उन मुल्ला-मौलवियों के सब नेताओं को फांसी पर लटका दिया। इसके बाद मुल्ला मौलवियों का विरोध समाप्त हो गया। इसके बाद उसने इस्लामी कानूनों को हटाकर उनके स्थान पर एक नई संहिता स्थापित की। बहु-विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ ढोरों की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव रखें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया गया। सेवाओं में घूस लेना निषिद्ध कर दिया गया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएँ दी गयीं। स्त्रियों के पहनावे से पर्दा उठा दिया गया और पुरुष पुराने ढंग के कपड़े छोड़कर सूट पहनने लगे।
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उसका एक अति मानवीय पक्ष भी था। उसने लतीफी नाम की एक महिला से शादी की थी। उससे कमाल को कोई सन्तान नहीं हुई और दो वर्ष बाद वह निस्संतान ही मर गयी। बीबी के मरने के बाद मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने कभी विवाह नहीं किया। जीवन के एकाकीपन को दूर करने के लिये उसने तेरह अनाथ बच्चों को गोद लिया जिनमें बारह लड़कियां थीं, और उनकी बेहतर ढंग से परवरिश की।
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कमाल अतातुर्क -- भारत के क्रांतिकारी कवि रामप्रसाद बिस्मिल से इतने अधिक प्रभावित थे कि तुर्की में एक नगर का नाम इन्होंने "बिस्मिल" रखा। बिस्मिल ने भी कमाल अतातुर्क की प्रशंसा में एक कविला लिखी थी जो इस समय अंतर्जाल पर तो उपलब्ध नहीं है। १९३८ में कमाल अतातुर्क का निधन हो गया।
तुर्की का वर्तमान तानाशाह शासक एर्दोगान अब स्वयं मुस्लिम विश्व का खलीफा बनना चाहता है। बड़ा कट्टर भारत विरोधी है। वह मुस्तफा कमाल पाशा की नीतियों को बदलना चाहता है। लेकिन उसे सफलता नहीं मिलेगी।
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आपने इतने लंबे इस लेख को पढ़ा जिसके लिए धन्यवाद॥
कृपा शंकर
१४ मई २०२५

1 comment:

  1. बीते हुए कल को मैंने तुर्की के कमाल-अतातुर्क (मुस्तफा कमाल पाशा) पर एक लेख लिखा था। वह वास्तव में बड़ा शानदार लेख था। कमाल अतातुर्क की कुछ बातें मुझे बड़ी अच्छी लगीं। सबसे अच्छी बात तो यह लगी कि उसने अपने इस्लामिक देश तुर्की में अरबी भाषा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। उसका कहना था कि कुरान पढ़नी है तो सिर्फ तुर्किश भाषा में ही पढ़ो, अरबी में नहीं। मस्जिदों से अजान भी सिर्फ तुर्किश भाषा में ही हो, कोई प्रवचन भी हो तो सिर्फ तुर्किश भाषा में ही हो। अरबी भाषा बोलने वाले पर उसने गोली चलाने की आज्ञा दे दी थी। लेकिन एक भी गोली चलाने की नौबत नहीं आई।
    इसी तरह उसने बुर्के पर और फ़ैज़ टोपी पर प्रतिबंध लगाया, व सारे इस्लामिक कानून बदल दिये। क्या हिम्मत रही होगी कि उसने खलीफा को व विरोध करने वाले मौलवियों को देश से भगा दिया।

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