भारत में कम से कम यदि दस व्यक्ति भी ऐसे हैं जिन्हें परमात्मा से परमप्रेम और समर्पण है -- तब तक यह राष्ट्र भारत व उसकी अस्मिता जीवित और अमर है।
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पिछले दस वर्षों में ईश्वर की प्रेरणा और परमकृपा से लगभग चार हजार छोटे-मोटे लेख मेरे माध्यम से लिखे गये हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य स्वयं को, और परमात्मा व राष्ट्र के प्रति हृदयस्थ अपने प्रेम को व्यक्त करना था। लिखने का आदेश व प्रेरणा मुझे कुछ संत-महात्माओं ने दी, अन्यथा मुझमें कोई योग्यता नहीं थी। उन्हीं के आशीर्वाद से उल्टा-सीधा कैसे भी लिखता रहा।
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सत्य-सनातन-धर्म शाश्वत व अमर है क्योंकि यह सृष्टि ही सनातन नियमों से चल रही है। जब तक मुझ में चेतना है तब अंतिम साँस तक परमात्मा की स्मृति बनी रहेगी। परमात्मा में स्वयं के सम्पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिये। इस समय राष्ट्र संकट में है अतः परमात्मा को समर्पित होकर उनसे प्रार्थना करेंगे। भारत अमर है और सदा विजयी रहेगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ मई २०२५
मेरा एकमात्र कर्तव्य परमात्मा के प्रकाश को अपनी पूरी क्षमता और सत्यनिष्ठा से फैलाना है। उस से बड़ा और कोई कर्तव्य मेरे लिए नहीं है। चारों ओर के वर्तमान घटनाक्रम से मैं भ्रमित और विचलित सा हो गया था। यह मेरी कमी थी। अब स्वयं को संयत कर लिया है। यह सृष्टि भगवान की है, मेरी नहीं। मेरे बिना भी उनकी सृष्टि चलेगी। भगवान को मेरी सलाह की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे जब उनसे स्पष्ट आश्वासन और मार्गदर्शन प्राप्त है, तब मेरा किसी भी बात पर उद्वेलित होना मेरी कमी है, जो अब और नहीं होनी चाहिए। अपनी भूल सुधार रहा हूँ।
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