जीवन में मेरा एक ही स्वप्न अधूरा है, वह है सत्य-सनातन-धर्म की सर्वत्र पुनः प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। भारत की प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था और कृषि-व्यवस्था पुनः स्थापित हो। परमात्मा से और कुछ भी नहीं चाहिये, वे हमारा पूर्ण समर्पण स्वीकार करें, और स्वयं को सर्वत्र सदा व्यक्त करें।
इसकी कोई व्यवहारिक संभावना नहीं लगती, लेकिन परमात्मा चाहें तो भूतकाल को भविष्यकाल में, और भविष्यकाल को भूतकाल में भी परिवर्तित कर सकते हैं। यह सृष्टि परमात्मा के मन का एक स्वप्न और संकल्प मात्र है। उनके स्वप्न और संकल्प परिवर्तित भी हो सकते हैं। अन्य कोई उपाय नहीं है, इसके लिए परमात्मा की आराधना करनी होगी। वे हमारी निश्चित रूप से सुनेंगे। पिछले कुछ दिनों से सच्चिदानंद की गहन अनुभूतियाँ हो रही है। यह जीवन उन्हें समर्पित है। और कुछ भी मुझ अकिंचन के पास नहीं है। वे इस अकिंचन को स्वीकार करें।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१३ मई २०२५
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