Thursday, 15 July 2021

वीतरागता ही मुक्ति है ---

 वीतरागता ही मुक्ति है ---

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पाशों में बद्ध पशु, पिंजरे में बंद पक्षी, बैलगाडी में जुड़े बैल, और हमारे में क्या अंतर है? क्या हम उस बैल की तरह हैं जो बैलगाड़ी में जुड़ा हुआ है; और जिनको हम प्रियजन कहते हैं वे डंडे से मार-मार कर उसे हाँक रहे हैं? हम उनकी मार खाकर और उनकी इच्छानुसार चलकर बहुत प्रसन्न हैं, और इसे अपना कर्त्तव्य मान रहे हैं|
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स्वतंत्रता अपना मूल्य माँगती हैं, वह निःशुल्क नहीं होती| जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान है उसकी कीमत चुकानी पडती है| बंधन में बंधना कोई दुर्भाग्य नहीं है, दुर्भाग्य है ..... मुक्त न होने का प्रयास करना| गुलाम होकर जन्म लेना कोई दुर्भाग्य नहीं है, पर गुलामी में मरना वास्तव में दुर्भाग्य है| पराधीन मनुष्य कभी मुक्ति का आनंद नहीं ले सकता|
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वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं नहीं| किसी दूसरे को दोष देने का कोई लाभ नहीं है| अपने दुःखों के जिम्मेदार हम स्वयं हैं...
"सुखस्य दु:खस्य न कोऽपि दाता, परो ददाति इति कुबुद्धिरेषा |
अहं करोमि इति वृथाभिमान:, स्वकर्मसूत्रै: ग्रथितोऽहि लोक: ||
-- आध्यात्म रामायण
कोई किसी को सुख या दुःख नहीं दे सकता, सिर्फ एक कुबुद्धि ही यह सोचता है कि दूसरे मुझे दुःख या सुख दे रहे हैं| कर्ताभाव भी एक व्यर्थ का अभिमान है, इस लोक में सब अपने कर्मफलों से बँधे हुए हैं|
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राग-द्वेष, लोभ और अहंकार से मुक्त व्यक्ति वीतराग कहलाता है| वीतराग व्यक्ति सब तरह के कर्मफलों से मुक्त है| उस पर कोई बंधन नहीं है| इसकी भी कीमत, उपासना, सत्संग, स्वाध्याय, ध्यान आदि की साधना के रूप में चुकानी पड़ती है| मृत्यु से पूर्व इस देह में ही हम स्वतंत्र बनें और स्वतन्त्रता में ही देह-त्याग करें| उपनिषदों और गीता में इस विषय पर ज्ञान भरा पड़ा है|
शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ जुलाई २०२०

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