जगन्माता के किस रूप की प्रार्थना करें? ---
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सृष्टि को चलाना भगवती जगन्माता का काम है, हमारा नहीं, ऐसी हमारी आस्था है। वे सृष्टि को अपने नियमों के अनुसार चला रही हैं, जिन्हें हम नहीं समझ पाते। यह हमारी कमी है। प्रातः उठते ही सर्वप्रथम प्रणाम, माता को ही करने का मन करता है। माता के किस रूप की प्रार्थना करें? यह पहले समझ में नहीं आता था। लेकिन जब से विचारों में परिपक्क्वता आयी है, सर्वप्रथम प्रणाम इस जन्म की अपनी स्वर्गीय लौकिक माता को ही स्वाभाविक रूप से होता है। मेरे लिए मेरी लौकिक माता साक्षात भगवती थीं, कोई सामान्य मानवी महिला नहीं। उठते ही सर्वप्रथम मानसिक रूप से मैं उनके श्रीचरणों में भगवती के साधना मंत्र "ॐ ह्रीं" से प्रणाम करता हूँ। फिर अपने स्वर्गीय पिता, और ब्रह्मलीन सद्गुरू को उनके श्रीचरणों में "ॐ ऐं" मंत्र से करता हूँ। भगवती के दैवीय सौम्यतम रूप की कल्पना करता हूँ तो भगवती सीता जी का ही विग्रह मेरे समक्ष आता है। फिर भगवती सीता जी के ही श्रीचरणों में मानसिक रूप से रामचरितमानस में दिये मंत्र -- "उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्, सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम्" -- से ही होता है। तंत्र की सभी उग्र और सौम्य देवियों का मुझे ज्ञान है, लेकिन उन सब से अधिक सौम्य तो भगवती सीता जी ही हैं। वे ही मेरे हृदय-साम्राज्य पर राज्य करती हैं, और भगवान श्रीराम ही मेरे हृदय के राजा हैं। अन्य किसी का राज्य मुझे स्वीकार्य नहीं है।
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अब रही बात साधना-पद्धतियों और मंत्रों की, तो वे गोपनीय हैं, जिन की चर्चा सार्वजनिक मंचों पर नहीं की जा सकतीं। कर्ता के स्थान पर तो मैं नहीं, ध्यान में भगवान श्रीकृष्ण को ही पाता हूँ। वे स्वयं ही अपने महेश्वर परमशिव रूप का ध्यान करते हैं। मैं तो कहीं पर भी नहीं हूँ, साक्षी रूप में भी नहीं। वे ही एकमात्र कर्ता और भोक्ता हैं।
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जो बातें मैं राजनीति, सामाजिकता, धर्म आदि की करता हूँ, वे सब पूर्व-जन्मों के संस्कारों के कारण हैं। वे भी अब अधिक दिनों तक नहीं रहेंगे। परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी चेतना में नहीं रहेगा। परमात्मा -- धर्म और अधर्म से भी परे हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१८ मई २०२१
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