Thursday, 15 July 2021

धर्म का आचरण ही धर्म की रक्षा है ---

धर्म का आचरण ही धर्म की रक्षा है। जो धर्म का आचरण करेंगे, धर्म उन्हीं की रक्षा करेगा। आने वाला समय बड़ा विकट है, जिसमें परमात्मा भी उन्हीं की रक्षा करेंगे जो स्वधर्म पर अडिग रहेंगे।

.
हमारा स्वधर्म है कि हम अपने निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करें। आरंभ में हमारा हर कार्य परमात्मा की प्रसन्नता के लिए हो, फिर परमात्मा को ही अपने स्वयं के माध्यम से कार्य करने दें। हर समय उनकी स्मृति रहे। यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण आरंभ कर दें। हमारा हर कार्य, हमारा हर क्षण, हमारी हर साँस परमात्मा को समर्पित हो। भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥"
.
भगवान कैसे मिलेंगे? भगवान स्वयं कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६.३०॥"
अब और क्या चाहिए? चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, आपका बाल भी बांका नहीं होगा। भगवान का हर समय स्मरण रखें, फिर वे मार्गदर्शन करेंगे। यदि मरना भी पड़े तो स्वधर्म में यानि भगवान का स्मरण करते करते ही मरें।
आप सब को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
७ मई २०२१

No comments:

Post a Comment