वर्तमान क्षण ---
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जिस क्षण में हम जी रहे हैं, वह क्षण हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक महत्वपूर्ण व चुनौतीपूर्ण समय है। इस काल में हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें। भगवान का इतना बड़ा ऋण हम सब पर है कि उस से हम कभी भी उऋण नहीं हो सकते, सिर्फ समर्पित ही हो सकते हैं। भगवान की इस से बड़ी कृपा और क्या हो सकती है कि उन्होंने हमें अपना उपकरण बनाया है। वे ही हमारे माध्यम से स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। प्रयासपूर्वक अपनी चेतना सदा आज्ञाचक्र पर या उस से ऊपर ही रखें। आज्ञाचक्र ही हमारा वास्तविक हृदय है। प्रभु के चरण कमल सहस्त्रार हैं। ब्रह्मरंध्र से ऊपर ब्रह्मांड की अनंतता से भी परे हमारा वास्तविक अस्तित्व है, यह देह भी उसी का एक भाग है। हम यह देह नहीं, यह देह हमारे अस्तित्व का एक छोटा सा भाग, और उस अनंतता को पाने का एक साधन मात्र है.
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अपने पूर्ण प्रेम से परमात्मा की इस परम ज्योतिर्मय विराट अनंतता पर ध्यान करें। यही पूर्णता है, यही परमशिव है, यही परब्रह्म है। अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें समर्पित कर दें, कुछ भी बचा कर न रखें। अपना सम्पूर्ण अस्त्तित्व, अपना सब कुछ उन्हें समर्पित कर दें। अभी तो हम अपने प्रारब्ध कर्मों का फल भुगत रहे हैं, लेकिन परमात्मा को समर्पित होते ही सारे संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं, और हम मुक्त हो जाते हैं। यही परमगति है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मई २०२१
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