Thursday, 15 July 2021

भगवान के ध्यान में सदा देह-विहीनता और सर्वव्यापकता के भाव में रहें ---

 भगवान के ध्यान में सदा देह-विहीनता और सर्वव्यापकता के भाव में रहें ---

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जो भी भजन, सत्संग, हरिचर्चा, जप आदि साधना/उपासना हम करते हैं, वह हरिःकृपा से ही संभव हैं। भगवान की कृपा के बिना क्या मजाल कि कोई भगवान का नाम भी ले ले !! भगवान हमें माध्यम बनाकर स्वयं ही स्वयं की उपासना करते हैं। आज प्रातः तीन बजे एक अति अति गहन अनुभूति द्वारा यह पूर्णतः स्पष्ट हो गया।
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पूर्ण भक्ति पूर्वक हमारा भाव सदा यही रहना चाहिये कि भगवान स्वयं ही उपासक, उपास्य और उपासना हैं; वे ही दृष्टा, दृश्य और दृष्टि हैं। हम जब परमशिव और भगवान विष्णु के माहेश्वर तेज का ध्यान करते हैं, तब कर्ता भी भगवान विष्णु को ही बनायें। वे अपना ध्यान स्वयं ही कर रहे हैं। अपनी पृथकता का बोध और अहंभाव उनको पूरी तरह समर्पित कर दें। उनकी कृपा के बिना उनके आंशिक तेज को भी कोई सहन नहीं कर सकता।
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भगवान के ध्यान में सदा देह-विहीनता और सर्वव्यापकता के भाव में रहें।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ मई २०२१

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