भगवान हैं, इसी समय हैं, सर्वदा हैं, यहीं पर हैं, सर्वत्र हैं ---
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ज्ञान अनंत है, विद्याएँ अनंत हैं, शास्त्र अनंत हैं, साधनायें अनंत हैं, लेकिन बुद्धि अत्यल्प है, कुछ भी समझ में नहीं आता| अपने बस की बात नहीं है कुछ भी समझना| सब कुछ एक विशाल अरण्य की तरह है जिसमें मेरे जैसा अकिंचन जिज्ञासु खो जाता है| फिर बाहर निकालने का मार्ग ही नहीं मिलता| अतः समझने का प्रयास करना ही छोड़ दिया है| जो आवश्यक होगा वह भगवान स्वयं ही समझा देंगे|
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सिर्फ एक बात ही समझ में आती है कि भगवान हैं, इसी समय हैं, सर्वदा हैं, यहीं पर हैं, सर्वत्र हैं| मैं उनके हृदय में हूँ, और वे मेरे हृदय में हैं| इसके अलावा मुझ भी कुछ नहीं भी पता| अन्य कुछ जानने या पता करने की इच्छा भी नहीं है| भगवान को मैने अपने हृदय में क़ैद यानि गिरफ्तार कर लिया है| वे कितना भी ज़ोर लगा लें पर बाहर नहीं आ सकते| अब तो उन्हें नित्य मेरे साथ सत्संग करना ही पड़ेगा| वे मेरे ही बंदी और सतसंगी हैं| वे मेरे साथ बहुत अधिक प्रसन्न हैं, अतः मैं भी बहुत प्रसन्न हूँ| और कुछ नहीं चाहिए| हे भगवान, अब सब कुछ तुम संभालो| मैं तुम्हारा हूँ, तुम मेरे हो, और सदा मेरे ही रहोगे| ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
१४ जुलाई २०२०
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