Wednesday, 14 July 2021

शिव सहस्त्रनाम की महिमा ---

 यदि संभव हो तो श्रावण के इस पवित्र माह में भी, और सदा नित्य, भगवान शिव की उपासना, महर्षि तंडी द्वारा अवतरित परम सिद्ध स्तवराज "शिवसहस्त्रनाम" से भी करें| किसी भी पवित्र शिवालय में श्रद्धा-भक्ति से इसका मानसिक रूप से पाठ कर भगवान शिव को बिल्व-पत्र और जल अर्पित कर आराधना करें|

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यह कथा महाभारत के अनुशासन-पर्व के १५वें अध्याय में आती है...
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सत्ययुग में तंडी नामक ऋषि ने बहुत कठोर तपस्या और उपासना द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया| आशुतोष भगवान शिव की कृपा से तंडी ऋषि की ज्योतिष्मती और मधुमती प्रज्ञा जागृत हो गयी, व उन में शिव-तत्व का ज्ञानोदय हुआ| महर्षि तंडी को महादेव के दर्शन प्राप्त हुए और उन के हृदय में देवाधिदेव भगवान महादेव के एक हज़ार सिद्ध नाम स्वयं जागृत हो गए| महर्षि ने उन नामों को ब्रह्मा को बताया| ब्रह्मा ने स्वर्गलोक में उन नामों का प्रचार किया| महर्षि तंडी ने पृथ्वी पर उन नामों को सिर्फ महर्षि उपमन्यु को बताया| महर्षि उपमन्यु ने उस समय विद्यार्थी के रूप में आये अपने शिष्य भगवान श्रीकृष्ण को वे नाम बताये| भगवान श्रीकृष्ण ने वे नाम महाराजा युधिष्ठिर को बताये| इसका विषद बर्णन महाभारत के अनुशासन पर्व में भगवान वेदव्यास ने किया है|
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एक बार भगवान श्रीकृष्ण तपस्या करने हिमालय गए जहाँ उन्हें ब्रह्मर्षि उपमन्यु के दर्शन हुए| ब्रह्मर्षि उपमन्यु ने श्रीकृष्ण को लगातार आठ दिनों तक शिव रहस्य का वर्णन सुनाया| इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन से गुरुमंत्र और दीक्षा ली| स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का कहना है ...
"दिनेSष्टमे तु विप्रेण दीक्षितोSहं यथाविधि|
दंडी मुंडी कुशी चीरी घृताक्तो मेखलीकृतः||"
अर्थात, हे युधिष्ठिर, अष्टम तिथि पर ब्राह्मण उपमन्यु ने मुझे यथाविधि दीक्षा प्रदान की| उन्होंने मुझे दंड धारण करवाया, मेरा मुंडन करवाया, कुशासन पर बैठाया, घृत से स्नान कराया, कोपीन धारण कराया तथा मेखलाबंधन भी करवाया|
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तत्पश्चात मैंने एक महीने भोजन में केवल फल लिये, दुसरे महीने केवल जल लिया, तीसरे महीने केवल वायु ग्रहण की, चतुर्थ एवम् पंचम माह एक पाँव पर ऊर्ध्ववाहू हो कर व्यतीत किये| फिर मुझे आकाश में सहस्त्र सूर्यों की ब्रह्म ज्योति दिखाई दी जिसमें मैंने शिव और पार्वती को बिराजमान देखा|
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शिव सहस्त्रनाम की महिमा ---
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ब्रह्मर्षि उपमन्यु की कृपा से मुझे शिवजी के जो एक सहस्त्र नाम मिले हैं, आज युधिष्ठिर मैं उन्हें तुम्हे सुनाता हूँ| ध्यान से सुनो| महादेव के ये सहस्त्र नाम समस्त पापों का नाश करते हैं और ये चारों वेदों के समान पवित्र हैं तथा उन्हीं के समान दैवीय शक्ति रखते हैं|
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विशेष :--- पूरा स्तोत्र १८२ श्लोकों में है| इन श्लोकों का नित्य किसी जागृत शिवालय में भक्तिपूर्वक मानसिक रूप से पाठ कर भगवान शिव की आराधना की जाये तो भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है|
जिज्ञासु साधक इसे सीधे महाभारत से उतार सकते हैं या गीताप्रेस गोरखपुर से मंगा सकते हैं| गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक कोड संख्या १५९९, मूल्य मात्र ६ रूपये| नेट पर भी उपलब्ध है जिसे प्रिंट कर सकते हैं| नेट पर इस का हिन्दी अनुवाद भी मिल जाएगा| गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तक "शिव स्तोत्र रत्नाकर" में भी सब से अंत मे दिया हुआ है|
ॐ तत्सत्॥ ॐ नमःशिवाय॥
१४ जुलाई २०२०

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