कुंडलिनी शक्ति का जागृत होकर सुषुम्ना मार्ग के सात चक्रों व तीन ग्रंथियों का भेदन कर परमशिव से मिलन "योग" है। यह एक अनुभूति है जिसका वर्णन अनेक सिद्धों ने अनेक प्रकार से किया है।
सुषुम्ना के चक्रों के बीज मन्त्रों का सृष्टि क्रम इस प्रकार है ... "हय वरट् लण्।"
"ह" विशुद्धि, "य" अनाहत, "व" स्वाधिष्ठान, "र" मणिपूर, "ल" मूलाधार। मानसिक रूप से इनका जप हं, यं, रं, वं, लं होता है|
ब्रह्म ग्रंथि का स्थान मूलाधार, विष्णु ग्रंथि का अनाहत और रुद्र ग्रंथि का आज्ञा चक्र है। इनके भेदन के लिए मंत्र जप और सूक्ष्म प्राणायाम विधि एक गोपनीय विद्या है जो गुरु मुख से ही बताई जा सकती है|
ग्रन्थियों के भेदन में सहायक तीन बंध हैं.... मूल बन्ध (मूलाधार), उड्डीयान बन्ध (मणिपूर) और जालन्धर बन्ध (विशुद्धि)।
दुर्गासप्तशती के तीन चरित्र, मुण्डकोपनिषद् के तीन मुण्डक भी तीन ग्रन्थिभेद हैं जो भगवती की कृपा से ज्ञात होते हैं। द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र के पीछे भी बहुत बड़ा एक रहस्य है जो हरिःकृपा से ही समझ में आता है| इस मंत्र की क्षमता बहुत अधिक है।
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अब अनेक नए नए रहस्य सामने आ रहे हैं, जिन का ज्ञान किसी पूर्व जन्म में था, अब वे स्मृति में आ रहे हैं। पूर्व जन्मों में कई सुप्त सांसारिक कामनाएँ थीं जिनके कारण यह जन्म लेना पड़ा जिस में भटकाव ही भटकाव रहा। यह जीवन तो व्यर्थ ही बीत गया, कुछ भी नहीं मिला। पूर्णता के लिए कम से कम एक जन्म तो और लेना पड़ेगा।
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ॐ श्रीपरमात्माने नमः !! ॐ तत्सत् !!
१ मई २०२०
सुषुम्ना के चक्रों के बीज मन्त्रों का सृष्टि क्रम इस प्रकार है ... "हय वरट् लण्।"
"ह" विशुद्धि, "य" अनाहत, "व" स्वाधिष्ठान, "र" मणिपूर, "ल" मूलाधार। मानसिक रूप से इनका जप हं, यं, रं, वं, लं होता है|
ब्रह्म ग्रंथि का स्थान मूलाधार, विष्णु ग्रंथि का अनाहत और रुद्र ग्रंथि का आज्ञा चक्र है। इनके भेदन के लिए मंत्र जप और सूक्ष्म प्राणायाम विधि एक गोपनीय विद्या है जो गुरु मुख से ही बताई जा सकती है|
ग्रन्थियों के भेदन में सहायक तीन बंध हैं.... मूल बन्ध (मूलाधार), उड्डीयान बन्ध (मणिपूर) और जालन्धर बन्ध (विशुद्धि)।
दुर्गासप्तशती के तीन चरित्र, मुण्डकोपनिषद् के तीन मुण्डक भी तीन ग्रन्थिभेद हैं जो भगवती की कृपा से ज्ञात होते हैं। द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र के पीछे भी बहुत बड़ा एक रहस्य है जो हरिःकृपा से ही समझ में आता है| इस मंत्र की क्षमता बहुत अधिक है।
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अब अनेक नए नए रहस्य सामने आ रहे हैं, जिन का ज्ञान किसी पूर्व जन्म में था, अब वे स्मृति में आ रहे हैं। पूर्व जन्मों में कई सुप्त सांसारिक कामनाएँ थीं जिनके कारण यह जन्म लेना पड़ा जिस में भटकाव ही भटकाव रहा। यह जीवन तो व्यर्थ ही बीत गया, कुछ भी नहीं मिला। पूर्णता के लिए कम से कम एक जन्म तो और लेना पड़ेगा।
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ॐ श्रीपरमात्माने नमः !! ॐ तत्सत् !!
१ मई २०२०
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