Thursday, 7 May 2020

आभूषण परिवर्तित होते रहते हैं, पर स्वर्ण यथावत् रहता है ....

आभूषण परिवर्तित होते रहते हैं, पर स्वर्ण यथावत् रहता है ....
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हम शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न प्रकार के स्वर्णाभूषण पहिनते हैं, जिनके विभिन्न नाम हैं| उन सब का भार और मूल्य भी पृथक-पृथक होता है| जब वे पुराने हो जाते हैं तब सोने को पिंघला कर सुनार नये आभूषण बना देता है| आभूषणों में परिवर्तन होता रहता है, पर सोने में नहीं| वैसे ही सारी सृष्टि निरंतर परिवर्तनशील है, पर सृष्टिकर्ता परमात्मा नहीं| गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....
"समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्| विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति||१३:२८||"
अर्थात् जो पुरुष समस्त नश्वर भूतों में अनश्वर परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही (वास्तव में) देखता है||
कथन का सार यह है कि हमारी चेतना निरंतर परमात्म तत्व में स्थिर रहे, न कि उनकी परिवर्तनशील सृष्टि में| यह सृष्टि एक दिन टूट कर बिखर जाएगी पर अपरिवर्तनशील परमात्मा यथावत् बने रहेंगे|
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सब रूपों में परमात्मा ही हमारे समक्ष आते हैं ..... भूख लगती है तो अन्न रूप में, प्यास लगती है तो जल रूप में, रोगी होते हैं तो औषधि रूप में, गर्मी में छाया रूप में, सर्दी में वस्त्र रूप में वे ही आते हैं| स्वर्ग और नर्क रूप में भी वे ही आते हैं| इस जन्म से पूर्व भी वे ही हमारे संग थे, और मृत्यु के उपरांत भी वे ही हमारे संग रहेंगे| उन्हीं का प्रेम हमें माता-पिता, भाई-बहिन, सगे-संबंधी, व शत्रु-मित्रों से मिला|
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हम स्वयं को यह नश्वर देह मान कर नश्वर वस्तुओं की कामना कराते हैं अतएव वे परमात्मा भी नश्वर रूप धर कर हमारे समक्ष स्वयं को व्यक्त करते हैं| भगवान कहते हैं ....
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्| मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः||४:११||"
अर्थात् जो मुझे जैसे भजते हैं, मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ; हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं||
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हम निरंतर उनका अनुस्मरण करेंगे तो वे भी अंत समय में हमारा अनुस्मरण करेंगे| हम नहीं भी कर पाएंगे तो भी अंत समय में वे ही हमें स्मरण कर लेंगे|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मई २०२०

1 comment:

  1. हम शरीर के विभिन्न अंगों पर विभिन्न प्रकार के स्वर्णाभूषण पहिनते हैं, जिनके विभिन्न नाम हैं। जब वे पुराने हो जाते हैं तब सोने को पिंघला कर सुनार नये आभूषण बना देता है। आभूषणों में परिवर्तन होता रहता है, पर सोने में नहीं। वैसे ही सारी सृष्टि निरंतर परिवर्तनशील है, पर सृष्टिकर्ता परमात्मा नहीं।
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    गीता में भगवान कहते हैं --
    "समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
    विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति॥१३:२८॥"
    अर्थात् जो पुरुष समस्त नश्वर भूतों में अनश्वर परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है, वही (वास्तव में) देखता है॥
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    हमारी चेतना निरंतर परमात्म तत्व में स्थिर रहे, न कि उनकी परिवर्तनशील सृष्टि में। यह सृष्टि एक दिन टूट कर बिखर जाएगी पर अपरिवर्तनशील परमात्मा यथावत् बने रहेंगे।
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    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    २ मई २०२२

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