हम चाहे जितनी ज्ञान की बातें करें, कितने भी उपदेश दें, उनसे कोई लाभ नहीं है| यह समय की बर्बादी ही है| हर मनुष्य अपने अपने स्वभाव के अनुसार ही चलेगा| किसी से कुछ भी अपेक्षा, निराशाओं को ही जन्म देगी| परमात्मा से जुड़कर ही अपने दृढ़ संकल्प से हम कुछ सकारात्मक कार्य कर सकते हैं, अन्यथा नहीं| यह सृष्टि भी परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| उनके भी कुछ नियम हैं, जिन्हें वे नहीं तोड़ेंगे|
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हमारी दृढ़ संकल्प शक्ति ही हमारी प्रार्थना हो| प्रचलित प्रार्थनाओं से अब कोई लाभ नहीं है| यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से निर्मित है| इसका संचालन भी उनके संकल्प से उनकी प्रकृति ही कर रही है| इसमें अच्छा-बुरा जो कुछ ही हो रहा है, उसके जिम्मेदार परमात्मा स्वयं ही हैं, हम नहीं|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि| प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति|| ३:३३||
अर्थात् ज्ञानवान् पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है| सभी प्राणी अपनी प्रकृति पर ही जाते हैं फिर इनमें (किसी का) निग्रह क्या करेगा|
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पूर्वजन्मों के संस्कारों से हमारे स्वभाव का निर्माण होता है| हमारा स्वभाव ही हमारी प्रकृति है| जैसी हमारी प्रकृति होगी वैसा ही कार्य हमारे द्वारा संपादित होगा| अपने उपास्य को पूर्णरूपेण समर्पित होकर नित्य नियमित उपासना से ही हम कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं| परमात्मा सब बंधनों से परे हैं और उनमें ही समस्त स्वतन्त्रता है| हम उन के साथ एक हों, कहीं भी कोई भेद नहीं रहे|
शिव शिव शिव !! ॐ तत्सत !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२०
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हमारी दृढ़ संकल्प शक्ति ही हमारी प्रार्थना हो| प्रचलित प्रार्थनाओं से अब कोई लाभ नहीं है| यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से निर्मित है| इसका संचालन भी उनके संकल्प से उनकी प्रकृति ही कर रही है| इसमें अच्छा-बुरा जो कुछ ही हो रहा है, उसके जिम्मेदार परमात्मा स्वयं ही हैं, हम नहीं|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि| प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति|| ३:३३||
अर्थात् ज्ञानवान् पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है| सभी प्राणी अपनी प्रकृति पर ही जाते हैं फिर इनमें (किसी का) निग्रह क्या करेगा|
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पूर्वजन्मों के संस्कारों से हमारे स्वभाव का निर्माण होता है| हमारा स्वभाव ही हमारी प्रकृति है| जैसी हमारी प्रकृति होगी वैसा ही कार्य हमारे द्वारा संपादित होगा| अपने उपास्य को पूर्णरूपेण समर्पित होकर नित्य नियमित उपासना से ही हम कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं| परमात्मा सब बंधनों से परे हैं और उनमें ही समस्त स्वतन्त्रता है| हम उन के साथ एक हों, कहीं भी कोई भेद नहीं रहे|
शिव शिव शिव !! ॐ तत्सत !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०२०
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