Thursday, 7 May 2020

मैमूना बेगम की दास्तान .....

मैमूना बेगम की दास्तान .....
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"जबानों पर दिलों की बात जब ला ही नहीं सकते,
जफा को फिर वफा की दास्ताँ कहनी ही पड़ती है।
न पूछो क्या गुजरती है दिले-खुद्दार पर अक्सर,
किसी बेमेहर को जब मेहरबाँ कहना ही पड़ता है।। "
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भूतपूर्व वज़ीर-ए-आजम जवाहर लाल नेहरू के ज़माने में इलाहाबाद में एक बहुत मशहूर व्यापारी हुआ करते थे .... ज़नाब नवाब अली ख़ान साहब| वे इलाहाबाद और प्रतापगढ़ जिलों के शराब के सबसे बड़े ठेकेदार भी थे| नेहरू जी घर में शराब की बड़ी-बड़ी पार्टियां हुआ करती थीं, जिनमें शराब की सप्लाई का काम वे ही करते थे|
उनकी बेगम साहिबा अपने निक़ाह से पहिले एक पारसी परिवार की बेटी थीं जिनका पारिवारिक उपनाम गंधी (Gandhi) था| शादी के समय इस्लाम कबूल कर के वे मुसलमान हो गई थीं|
वहाँ के कब्रिस्तान में उन दोनों की कब्रें भी हैं, पता नहीं वहाँ अक़ीदत के फूल चढ़ाने भी कोई जाता है या नहीं? उनके खानदान में बड़े बड़े मशहूर लोग हुए हैं, जिन्हें सारी दुनिया जानती है|
उन ज़नाब नवाब अली खान साहब के साहबज़ादे का नाम फिरोज़ ख़ान था, जिन से मेमूना बेगम का निकाह हुआ| बाद में दोनों की बनी नहीं, और मेमूना बेगम ने धक्के मारकर उनको घर से बाहर कर दिया और युनूस खान नाम के एक दूसरे शख़्स से निक़ाह कर लिया|
अब तो यह बात बहुत पुरानी हो गई है जिसे भूल जाना चाहिए| पर भूल कर भी भूल नहीं पा रहे हैं|
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"जिसे रौनक़ तेरे क़दमों ने देकर छीन ली रौनक़।
वो लाख आबाद हों, उस घर की वीरानी नहीं जाती॥"
"अरबाबे-सितम की खिदमत में इतनी ही गुजारिश है मेरी।
दुनिया से कयामत दूर सही दुनिया की कयामत दूर नहीं॥"
(अरबाबे-सितम = सितम (जुल्म) ढाने वाला)
२५ अप्रेल २०२०

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