जब परमात्मा की अनुभूति होने लगे तब प्रत्यक्ष परमात्मा का ही चिंतन ध्यान आदि करना चाहिए| फिर पुस्तकों के अध्ययन और बाहरी सत्संग से कोई लाभ नहीं है| निरंतर परमात्मा का ही सत्संग करना चाहिए| ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा हैं, पुस्तकें नहीं| अगर आप कहीं जा रहे हैं और आप का लक्ष्य आप को दिखाई देना आरंभ हो जाये तो आपको "मार्ग-निर्देशिका" की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती| फिर आपका दृष्टि-पथ आपके लक्ष्य की ओर ही हो जाना चाहिए| आप फिर अपने लक्ष्य को व अपने पथ को ही निहारिए, अन्यत्र कहीं भी नहीं|
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पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की अंधकारमय रात्री में यदि कोई मुझसे पूछे कि ध्रुवतारा कहाँ है, तो मैं उसे अपनी अंगुली का संकेत कर के ध्रुव तारा और सप्तऋषिमण्डल दिखा दूंगा| एक बार उसने देख लिया और ध्रुवतारे की पहिचान कर ली तो फिर मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं है| यदि मैं यह अपेक्षा करूँ कि वह मेरे अंगुली का भी सदा सम्मान करे तो यह मेरी मूर्खता होगी| उत्तरी गोलार्ध की बात मैंने इस लिए की है क्योंकि ध्रुवतारा और सप्तऋषिमण्डल इस पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के उत्तर से ही दिखाई देते हैं, दक्षिण से नहीं| जितना उत्तर में जाओगे उतना ही स्पष्ट यह दिखाई देने लगेगा| भूमध्य रेखा के दक्षिण से ध्रुव तारे व सप्तऋषिमण्डल को नहीं देख सकते|
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जो बात मैं कहना चाहता था वह तो मैंने कह दी है| एक बार जब परमात्मा की अनुभूति हो जाए तो फिर प्रत्यक्ष परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए जब तक द्वैतभाव समाप्त न हो जाये| समभाव में स्थिति से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है| ज्ञानी व्यक्ति मुक्त होता है, वह किसी नियम से नहीं बंधा होता, उसके लिए कोई नियम नहीं है|
आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०२०
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पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की अंधकारमय रात्री में यदि कोई मुझसे पूछे कि ध्रुवतारा कहाँ है, तो मैं उसे अपनी अंगुली का संकेत कर के ध्रुव तारा और सप्तऋषिमण्डल दिखा दूंगा| एक बार उसने देख लिया और ध्रुवतारे की पहिचान कर ली तो फिर मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं है| यदि मैं यह अपेक्षा करूँ कि वह मेरे अंगुली का भी सदा सम्मान करे तो यह मेरी मूर्खता होगी| उत्तरी गोलार्ध की बात मैंने इस लिए की है क्योंकि ध्रुवतारा और सप्तऋषिमण्डल इस पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के उत्तर से ही दिखाई देते हैं, दक्षिण से नहीं| जितना उत्तर में जाओगे उतना ही स्पष्ट यह दिखाई देने लगेगा| भूमध्य रेखा के दक्षिण से ध्रुव तारे व सप्तऋषिमण्डल को नहीं देख सकते|
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जो बात मैं कहना चाहता था वह तो मैंने कह दी है| एक बार जब परमात्मा की अनुभूति हो जाए तो फिर प्रत्यक्ष परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए जब तक द्वैतभाव समाप्त न हो जाये| समभाव में स्थिति से ही वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है| ज्ञानी व्यक्ति मुक्त होता है, वह किसी नियम से नहीं बंधा होता, उसके लिए कोई नियम नहीं है|
आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०२०
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