भगवान "हैं", यहीं "हैं", इसी समय "हैं", सर्वत्र "हैं", और सर्वदा "हैं"| ॐ ॐ ॐ !!
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सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आत्म अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥
सच्चिदानंद कूटस्थ परमब्रह्म ही मेरा स्वरूप हैं| तेलधारा की तरह अविछिन्न भाव से चैतन्य में निरंतर प्रणव ध्वनि के रूप में उन्हीं का नाद गूँज रहा है| हर सांस के साथ "हं" "सः" मंत्र का मानसिक अजपा-जप चल रहा है| कहीं कोई भेद नहीं है| ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ क्लीं !! हे भगवती महाकाली मेरे परम शत्रु इस तमोगुण रूपी महिषासुर का वध करो| यह हर कदम पर मुझे आहत कर रहा है| यह मेरी सर्वोपरि बाधा है| अंततः सभी गुणों से मुक्त कर मुझे वसुदेव (सर्वत्र समभाव में विद्यमान) में आत्मस्थ करो| मैं परमशिव की पूर्णता और उन के साथ एक हूँ| ॐ ॐ ॐ !!
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जो गोविंद को नमस्कार करते हैं, वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं| जो हरिः की अर्चना करते हैं, वे वृषध्वज रुद्र की ही अर्चना करते हैं| जो विरूपाक्ष शिव के प्रति विद्वेष पोषण करते हैं, वे जनार्दन से ही विद्वेष करते हैं| जो रुद्र को नहीं जानते वे केशव को भी नहीं जानते हैं|
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२०
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सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आत्म अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥
सच्चिदानंद कूटस्थ परमब्रह्म ही मेरा स्वरूप हैं| तेलधारा की तरह अविछिन्न भाव से चैतन्य में निरंतर प्रणव ध्वनि के रूप में उन्हीं का नाद गूँज रहा है| हर सांस के साथ "हं" "सः" मंत्र का मानसिक अजपा-जप चल रहा है| कहीं कोई भेद नहीं है| ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ क्लीं !! हे भगवती महाकाली मेरे परम शत्रु इस तमोगुण रूपी महिषासुर का वध करो| यह हर कदम पर मुझे आहत कर रहा है| यह मेरी सर्वोपरि बाधा है| अंततः सभी गुणों से मुक्त कर मुझे वसुदेव (सर्वत्र समभाव में विद्यमान) में आत्मस्थ करो| मैं परमशिव की पूर्णता और उन के साथ एक हूँ| ॐ ॐ ॐ !!
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जो गोविंद को नमस्कार करते हैं, वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं| जो हरिः की अर्चना करते हैं, वे वृषध्वज रुद्र की ही अर्चना करते हैं| जो विरूपाक्ष शिव के प्रति विद्वेष पोषण करते हैं, वे जनार्दन से ही विद्वेष करते हैं| जो रुद्र को नहीं जानते वे केशव को भी नहीं जानते हैं|
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२०
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