Wednesday, 20 August 2025

भगवान की प्राप्ति एक सरल से सरल कार्य है। इससे अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है ---

 भगवान की प्राप्ति एक सरल से सरल कार्य है। इससे अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है। भगवान की कृपा को प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें सिर्फ सत्यनिष्ठा और परमप्रेम ही चाहिये, अन्य सारे गुण अपने आप खींचे चले आते हैं। भगवान सत्य-नारायण हैं, वे सत्य-नारायण की कथा से नहीं, हमारे स्वयं के सत्यनिष्ठ बनने से प्राप्त होते हैं। हमें स्वयं को ही सत्य-नारायण बनना होगा। भगवान की प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक हमारा लोभ और अहंकार है। किसी भी तरह की कोई कामना या आकांक्षा हमारे हृदय में नहीं हो, केवल अभीप्सा हो। ॐ ॐ ॐ॥

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पुनश्च: --- वास्तविक स्वतन्त्रता ईश्वर में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं। हम निज जीवन में ईश्वर का साक्षात्कार करके ही स्वतंत्र हो सकते हैं, अन्यथा नहीं। एक वीतराग व्यक्ति ही स्वतंत्र है, जो सब तरह के राग-द्वेष और अहंकार से मुक्त है। जीवन की सभी विषमताओं का एकमात्र कारण -- ईश्वर से विमुखता है।
श्रीमद्भगवद्गीता का चरम ध्लोक सदा याद रखें जिसमें भगवान कहते हैं --
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
इससे पूर्व भगवान कह चुके हैं कि --
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे॥१८:६५॥"
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"

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