परमात्मा की अनंतता का ध्यान करते हुए स्वयं उस अनंतता के साथ एक होकर, अनंतता से भी परे परमशिव ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करो ---
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हमारा वास्तविक शरीर परमात्मा की अनंतता है, यह भौतिक देह नहीं। ध्यान के समय ब्रह्मरंध्र के मार्ग से इस भौतिक देह से बाहर रहते हुये साधना करने का अभ्यास करो। ध्यान के पश्चात चेतना स्वयमेव ही इस भौतिक देह में लौट आयेगी।
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ध्यान के समय दूर दूर जहाँ तक मेरी चेतना जाती है, केवल मेरे सिवाय कोई अन्य नहीं है। चारों ओर आलोक ही आलोक है, उस आलोक से निःसृत हो रही प्रणव की ध्वनि है; कहीं कोई अंधकार नहीं है। मेरा होना भी भ्रम ही है, वास्तव में परमशिव के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जुलाई २०२५
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