(प्रश्न) मेरा अपने गुरु सें क्या सम्बन्ध है?
(यह बात बताई जा सकती है, इसलिए एक आंतरिक प्रेरणावश लिख रहा हूँ, अन्यथा किसी भी परिस्थिति में नहीं लिखता)
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(उत्तर) एक दिन मैं बहुत गहरे ध्यान में था। संसार की चेतना बिलकुल भी नहीं थी। मेरी चेतना भी इस भौतिक शरीर में नहीं थी। अचानक ही एक अनुभूति हुई कि गुरु महाराज पद्मासन में अपने परम ज्योतिर्मय रूप में मेरे समक्ष आकाश में बिराजमान हैं। उन्होने बड़े प्रेम से एक ही वाक्य बोला और अंतर्ध्यान हो गए। उस वाक्य का यदि अङ्ग्रेज़ी में अनुवाद किया जाये तो वह होगा -- "You be what I am".
उनका संदेश पूरी तरह समझ में आ गया। उनके कहने का तात्पर्य यही था कि शब्दों से ऊपर उठो और उस चेतना को प्राप्त करो जिसमें मैं हूँ। उनका आदेश था कि सब तरह के शब्दों और सांसारिकता से ऊपर उठकर परमात्मा में स्थित हो जाओ, और परमात्मा की चेतना में ही रहो।
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तब से गुरु और परमात्मा से पृथकता का बोध समाप्त हो गया है। वास्तविकता में एकमात्र अस्तित्व सिर्फ परमात्मा का है। मेरा पृथकता का बोध यानि मेरा अस्तित्व मिथ्या है। जब तक प्रारब्ध कर्मों का अवशेष है तब तक यह भौतिक देह रहेगी। फिर यह देह भी छूट जाएगी, और संसार के लिए मैं अज्ञात हो जाऊंगा। अब मेरी कोई स्वतंत्र इच्छा का कोई महत्व नहीं रहा है। जो भगवान की इच्छा है, वही मेरी भी इच्छा है।
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परमशिव ही सारा अस्तित्व हैं। गुरु भी वे हैं, शिष्य भी वे हैं, यह विश्व और उसकी सर्वव्यापक पूर्णता भी वे ही हैं। मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। वे स्वयं ही यह विश्व बन गए हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३० जुलाई २०२३
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