Tuesday, 5 December 2017

दिशाहीन व्यवस्थाएँ ही हमारी दुर्गति का कारण हैं

दिशाहीन व्यवस्थाएँ (राजतंत्र, न्यायतंत्र, समाचार माध्यम, आस्थाएँ, आदि) ही हमारी दुर्गति का कारण हैं |
महासागर में जलयान, आकाश में वायुयान और अरण्य में कोई पथिक अपनी दिशा से भटक जाए तो उसका विनाश निश्चित है | वैसे ही दिशाहीन समाज, राष्ट्र और व्यक्ति का विनाश निश्चित है |

हमारी दिशा सिर्फ आध्यात्म ही हो सकती है, ऐसी मेरी सोच है |

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !

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