दलाई लामा को अब भारत से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए| अब भारत में
उनको रखने का उद्देश्य पूरा हो चुका है| भारत को उनकी आवश्यकता नहीं है और
उनको भी भारत की आवश्यकता नहीं है| एक षडयंत्र के अंतर्गत अमेरिका की सीआईए
ने ३१ मार्च १९५९ को (उस समय मात्र १५ वर्ष के) दलाई लामा को भारत में
घुसा दिया था ताकि भारत और चीन के मध्य सदा तनाव बना रहे| उनके साथ उस समय
८० हज़ार तिब्बती शरणार्थी भी आये थे| भारत चाहता तो उस समय तिब्बत को एक
स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर एक स्वतंत्र देश बना
सकता था| भारत के पास उस समय इतनी क्षमता थी| तिब्बत ..... भारत और चीन के
मध्य एक buffer state की तरह रहता तो चीन की सीमा भारत से कहीं पर भी नहीं
लगती, और चीन से कोई सीमा विवाद भी नहीं रहता| पर भारत का राजनीतिक
नेतृत्व उस समय अदूरदर्शी, किंकर्तव्यविमूढ़ और अकुशल था|
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दलाई लामा कोई आध्यात्मिक संत नहीं हैं| अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें आध्यात्मिक संत के रूप में project कर रखा है| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कुछ भी लेनादेना नहीं है| आदतन वे नित्य बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती सूअर का और गाय का मांस खाते हैं| उनकी आस्था बौद्ध मत की वज्रयान शाखा से है|
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अब तो दलाई लामा स्वयं ही तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दे रहे हैं, अतः भारत से उनको चले जाना चाहिए| दलाई लामा को भारत से बाहर करना भारत के राष्ट्रीय हित में रहेगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
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दलाई लामा कोई आध्यात्मिक संत नहीं हैं| अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें आध्यात्मिक संत के रूप में project कर रखा है| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कुछ भी लेनादेना नहीं है| आदतन वे नित्य बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती सूअर का और गाय का मांस खाते हैं| उनकी आस्था बौद्ध मत की वज्रयान शाखा से है|
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अब तो दलाई लामा स्वयं ही तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दे रहे हैं, अतः भारत से उनको चले जाना चाहिए| दलाई लामा को भारत से बाहर करना भारत के राष्ट्रीय हित में रहेगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ नवम्बर २०१७
२५ नवम्बर २०१७
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