Tuesday, 5 December 2017

वह हम स्वयं ही हैं .....

वह हम स्वयं ही हैं .....
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इस संसार में जो कुछ भी हम ढूँढ रहे हैं ..... "सुख", "शांति", "सुरक्षा", "आनंद", "समृद्धि", "वैभव", "यश", और "कीर्ति" ...... वह सब तो हम स्वयं ही हैं | बाहर के विश्व में इन सब की खोज एक मृगतृष्णा मात्र है |
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पूर्णता का ध्यान करते हुए पूर्णता को समर्पित होकर ही हम पूर्ण हो सकते हैं | जिस परमब्रह्म परमशिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ उस को समर्पित होकर ही हम अमर हो सकते हैं |
जिसे हम परमब्रह्म, सदाशिव या परमशिव कहते हैं, वह ही पूर्णता है जिसको उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है | जब तक हम उसमें समर्पित नहीं हो जायेंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी | पूर्णता का एकमात्र मार्ग है ..... परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की गहन अभीप्सा | अन्य कोई मार्ग नहीं है | जब इस मार्ग पर चलते हैं तो परमप्रेमवश प्रभु स्वयं ही निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं | कुछ बनना और कुछ होना ..... ये दोनों अलग अलग अवस्थाएँ हैं, जो कभी एक नहीं हो सकतीं |
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते |पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७

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