प्रमाद ही मृत्यु है .....
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भक्तिसूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य हैं | उन्होंने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को सर्वप्रथम ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया था | ब्रह्मा जी के ध्यान के परिणामस्वरूप साक्षात् श्री हरि ने ही इन चारों सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार के रूप में अवतार लिया था | शरीर से ये पाँच वर्ष की आयु वाले लगते थे तथा सर्वदा पाँच वर्ष की आयु के देह में ही रहे, अभी भी ये पाँच वर्ष की आयु के ही लगते हैं | समय समय पर हर युग में ये प्रकट हुए हैं |
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भगवान सनत्कुमार ने अपने उपदेशों में मृत्यु के अस्तित्व को नकार दिया है | महाभारत काल में महात्मा विदुर की प्रार्थना मान कर ये प्रकट हुए और धृतराष्ट्र को भी उपदेश दिए जो सनत्सुजातीय ग्रन्थ में उपलब्ध हैं | उन का कथन था .. "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि", अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है | अपने "अच्युत स्वरूप" को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है और इसी का नाम "मृत्यु" है | जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए, बस वहीँ मृत्यु है |
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भक्तिसूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य हैं | उन्होंने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को सर्वप्रथम ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया था | ब्रह्मा जी के ध्यान के परिणामस्वरूप साक्षात् श्री हरि ने ही इन चारों सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार के रूप में अवतार लिया था | शरीर से ये पाँच वर्ष की आयु वाले लगते थे तथा सर्वदा पाँच वर्ष की आयु के देह में ही रहे, अभी भी ये पाँच वर्ष की आयु के ही लगते हैं | समय समय पर हर युग में ये प्रकट हुए हैं |
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भगवान सनत्कुमार ने अपने उपदेशों में मृत्यु के अस्तित्व को नकार दिया है | महाभारत काल में महात्मा विदुर की प्रार्थना मान कर ये प्रकट हुए और धृतराष्ट्र को भी उपदेश दिए जो सनत्सुजातीय ग्रन्थ में उपलब्ध हैं | उन का कथन था .. "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि", अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है | अपने "अच्युत स्वरूप" को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है और इसी का नाम "मृत्यु" है | जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए, बस वहीँ मृत्यु है |
भगवान सनत्कुमार की जय हो | ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय |
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दुर्गा सप्तशती में 'महिषासुर' --- प्रमाद --- यानि आलस्य रूपी तमोगुण का ही प्रतीक है | आलस्य यानि प्रमाद को समर्पित होने का अर्थ है -- 'महिषासुर' को अपनी सत्ता सौंपना |
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तैत्तिरीयोपनिषद् भी प्रमाद से बचने का उपदेश देता है ......
धर्मं चर स्वाध्यायात् मा प्रमदः आचार्याय प्रियं धनम् आहृत्य प्रजा - तन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः सत्यात् न प्रमदितव्यम् धर्मात् न प्रमदितव्यम्। कुशलात् न प्रमदितव्यम् भूत्यै न प्रमदितव्यम् स्वाधायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् |
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हे भगवन आपकी जय हो | सभी का कल्याण करो | हमें धर्म, स्वाध्याय, और सत्य के पालन में कभी प्रमाद न हो | हम अपने अच्युत स्वरुप में रहें, कभी च्युत न हों |
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ओम् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि र्व्यशेम देवहितं यदायुः ||
स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः |
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ||
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति |
कृपा शंकर
१९ नवम्बर २०१७
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दुर्गा सप्तशती में 'महिषासुर' --- प्रमाद --- यानि आलस्य रूपी तमोगुण का ही प्रतीक है | आलस्य यानि प्रमाद को समर्पित होने का अर्थ है -- 'महिषासुर' को अपनी सत्ता सौंपना |
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तैत्तिरीयोपनिषद् भी प्रमाद से बचने का उपदेश देता है ......
धर्मं चर स्वाध्यायात् मा प्रमदः आचार्याय प्रियं धनम् आहृत्य प्रजा - तन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः सत्यात् न प्रमदितव्यम् धर्मात् न प्रमदितव्यम्। कुशलात् न प्रमदितव्यम् भूत्यै न प्रमदितव्यम् स्वाधायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् |
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हे भगवन आपकी जय हो | सभी का कल्याण करो | हमें धर्म, स्वाध्याय, और सत्य के पालन में कभी प्रमाद न हो | हम अपने अच्युत स्वरुप में रहें, कभी च्युत न हों |
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ओम् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि र्व्यशेम देवहितं यदायुः ||
स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः |
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ||
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति |
कृपा शंकर
१९ नवम्बर २०१७
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