सफलता और विफलता का मापदंड .....
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड है कि हम परमात्मा के कितने समीप हैं| पूरी सत्यनिष्ठा से जितने हम परमात्मा के समीप हैं, उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं|
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भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए| हमारा जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है| प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी| अपनी विफलताओं का दोष हम दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर न डालें|
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हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, व क्षोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से हमारा कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को प्रणाम !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड है कि हम परमात्मा के कितने समीप हैं| पूरी सत्यनिष्ठा से जितने हम परमात्मा के समीप हैं, उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं|
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भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए| हमारा जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है| प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी| अपनी विफलताओं का दोष हम दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर न डालें|
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हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, व क्षोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से हमारा कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को प्रणाम !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७
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