Tuesday, 5 December 2017

एक साथ इतने गुण कहाँ से लायें ? .....

एक साथ हम "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" कैसे बनें कभी इस पर भी विचार करें | बनना तो पडेगा ही क्योंकि यह भगवान का आदेश है ......

"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्" ||२.४५||

भगवान ने पाँच आदेश एक साथ दे दिए हैं | पर सभी एक दूसरे के पूरक हैं | जब तक हम इस स्थिति में नहीं पहुंचेंगे तब तक पाशों में बंधे ही रहेंगे, और पुनर्जन्म होता ही रहेगा | इसके लिए हमें किन्हीं तत्वज्ञ श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन लेना ही पड़ेगा |
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इसको समझना और व्यवहार रूप में उपलब्ध करना असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य है | इसको समझने के लिए अर्जुन जैसा शिष्य और भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु हों, या देवर्षि नारद जैसे शिष्य और भगवान सनत्कुमार जैसे गुरु हों, तभी कल्याण हो सकता है |
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हमारे में पात्रता हो, बस यही आवश्यक है, फिर सब काम हो जाएगा |
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हे प्रभु कल्याण करो | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

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