Wednesday 12 July 2017

विरही को कहीं सुख नहीं है ...

विरही को कहीं सुख नहीं है ....
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"कबीर बिछड्या राम सूँ , ना सुख धूप न छाँह" |
सुख सिर्फ राम में ही है, बाकी सब मृगतृष्णा है| विरही को कहीं सुख नहीं है|
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नैनन की करि कोठरी पुतली पलंग विछाय | पलकों की चिक डारिकै पिय को लिया रिझाय ||
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पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात | देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात ||
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ॐ ॐ ॐ ||

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