उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग .......
>
आसमान में एक उलटा कुआँ लटक रहा है जिसका रहस्य सिर्फ प्रभु कृपा से ही ध्यान साधक योगी समझ पाते हैं| उस कुएँ में एक चिराग यानि दीपक सदा प्रज्ज्वलित रहता है| उस दीपक में न तो कोई ईंधन है, और ना ही कोई बत्ती है फिर भी वह दीपक दिन रात छओं ऋतु और बारह मासों जलता रहता है|
उस दीपक की अखंड ज्योति में से एक अखंड ध्वनि निरंतर निकलती है जिसे सुनते रहने से साधक समाधिस्थ हो जाता है| संत पलटूदास जी कहते हैं कि उस ध्वनी को सुनने वाला बड़ा भाग्यशाली है| पर उस ज्योति के दर्शन और उस नाद का श्रवण सद् गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं करा सकता|
>
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ......
तिसमें जरै चिराग, बिना रोगन बिन बाती |
छह ऋतु बारह मास, रहत जरतें दिन राती ||
सतगुरु मिला जो होय, ताहि की नजर में आवै |
बिन सतगुरु कोउ होर, नहीं वाको दर्शावै ||
निकसै एक आवाज, चिराग की जोतिन्हि माँही |
जाय समाधी सुनै, और कोउ सुनता नांही ||
पलटू जो कोई सुनै, ताके पूरे भाग |
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ||
>
उलटा कुआँ मनुष्य कि खोपड़ी है जिसका मुँह नीचे की ओर खुलता है| उस कुएँ में हमारी आत्मा यानि हमारी चैतन्यता का निवास है| उसमें दिखाई देने वाली अखंड ज्योति ----- ज्योतिर्मय ब्रह्म है, उसमें से निकलने वाली ध्वनि ---- अनाहत नादब्रह्म है, यही राम नाम की ध्वनी है|
>
'कूटस्थ' में इनके साथ एकाकार होकर और फिर इनसे भी परे जाकर जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त होती है| इसका रहस्य समझाने के लिए परमात्मा श्रोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सद्ग गुरु के रूप में अवतरित होते हैं| यह चैतन्य का दीपक ही हमें जीवित रखता है, इसके बुझ जाने पर देह मृत हो जाती है|
बाहर हम जो दीपक जलाते हैं ---- वे प्रतीक मात्र हैं| बाहर कि घंटा, घड़ियाल, टाली और शंख आदि की ध्वनी उस अनाहत नाद की ही प्रतीक हैं|
>
ह्रदय में गहन भक्ति और अभीप्सा ही हमें राम से मिलाती हैं|
>
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२९ जून २०१५
.
पुनश्चः :--
ज्योतिर्मय ब्रह्म पर ध्यान करते करते हम शब्द ब्रह्म तक पहुँच जाते हैं| मेरे अपने अनुभव के अनुसार जब हम शिवनेत्र होकर भ्रूमध्य में ध्यान करते हैं तब गुरुकृपा से ज्योति के भी दर्शन होते हैं और और नाद भी सुनाई देने लगता है| जैसे जैसे अज्ञान दूर होता है, कामनाएँ भी नष्ट होने लगती हैं और हम जीवन मुक्ति की ओर अग्रसर होने लगते हैं| ॐ ॐ ॐ ||
>
आसमान में एक उलटा कुआँ लटक रहा है जिसका रहस्य सिर्फ प्रभु कृपा से ही ध्यान साधक योगी समझ पाते हैं| उस कुएँ में एक चिराग यानि दीपक सदा प्रज्ज्वलित रहता है| उस दीपक में न तो कोई ईंधन है, और ना ही कोई बत्ती है फिर भी वह दीपक दिन रात छओं ऋतु और बारह मासों जलता रहता है|
उस दीपक की अखंड ज्योति में से एक अखंड ध्वनि निरंतर निकलती है जिसे सुनते रहने से साधक समाधिस्थ हो जाता है| संत पलटूदास जी कहते हैं कि उस ध्वनी को सुनने वाला बड़ा भाग्यशाली है| पर उस ज्योति के दर्शन और उस नाद का श्रवण सद् गुरु के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं करा सकता|
>
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ......
तिसमें जरै चिराग, बिना रोगन बिन बाती |
छह ऋतु बारह मास, रहत जरतें दिन राती ||
सतगुरु मिला जो होय, ताहि की नजर में आवै |
बिन सतगुरु कोउ होर, नहीं वाको दर्शावै ||
निकसै एक आवाज, चिराग की जोतिन्हि माँही |
जाय समाधी सुनै, और कोउ सुनता नांही ||
पलटू जो कोई सुनै, ताके पूरे भाग |
उलटा कुआँ गगन में, तिसमें जरै चिराग ||
>
उलटा कुआँ मनुष्य कि खोपड़ी है जिसका मुँह नीचे की ओर खुलता है| उस कुएँ में हमारी आत्मा यानि हमारी चैतन्यता का निवास है| उसमें दिखाई देने वाली अखंड ज्योति ----- ज्योतिर्मय ब्रह्म है, उसमें से निकलने वाली ध्वनि ---- अनाहत नादब्रह्म है, यही राम नाम की ध्वनी है|
>
'कूटस्थ' में इनके साथ एकाकार होकर और फिर इनसे भी परे जाकर जीवात्मा परमात्मा को प्राप्त होती है| इसका रहस्य समझाने के लिए परमात्मा श्रोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सद्ग गुरु के रूप में अवतरित होते हैं| यह चैतन्य का दीपक ही हमें जीवित रखता है, इसके बुझ जाने पर देह मृत हो जाती है|
बाहर हम जो दीपक जलाते हैं ---- वे प्रतीक मात्र हैं| बाहर कि घंटा, घड़ियाल, टाली और शंख आदि की ध्वनी उस अनाहत नाद की ही प्रतीक हैं|
>
ह्रदय में गहन भक्ति और अभीप्सा ही हमें राम से मिलाती हैं|
>
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
२९ जून २०१५
.
पुनश्चः :--
ज्योतिर्मय ब्रह्म पर ध्यान करते करते हम शब्द ब्रह्म तक पहुँच जाते हैं| मेरे अपने अनुभव के अनुसार जब हम शिवनेत्र होकर भ्रूमध्य में ध्यान करते हैं तब गुरुकृपा से ज्योति के भी दर्शन होते हैं और और नाद भी सुनाई देने लगता है| जैसे जैसे अज्ञान दूर होता है, कामनाएँ भी नष्ट होने लगती हैं और हम जीवन मुक्ति की ओर अग्रसर होने लगते हैं| ॐ ॐ ॐ ||
सत्य ही है कि आसमान में एक उल्टा कुआं है, जिसमे एक चिराग सदा जलता रहता है| आसमान में देखने पर हमें न तो कोई उल्टा कुआं नज़र आता है और न ही जलता हुआ चिराग,फिर वो आसमान है कहाँ पर,जिसमे चिराग हमेशा जलता रहता है| मनुष्य का सिर उल्टा कुआं है। सिर का मुंह ऊपर की बजाय नीचे की और खुलता है| जबकि पानी वाले कुँए का मुंह हमेशा ऊपर की तरफ खुलता है| सिर रूपी उल्टा कुआं में हमारी आत्मा या हमारी चेतनता का दीपक हमेशा जलता रहता है। ये चेतनता का दीपक यदि बुझ जाये तो शरीर मृत हो जाता है। हमारी चेतनता का जलता हुआ चिराग हमारे शरीर को जीवित रखता है। विभन्न त्योहारों पर अथवा मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा व् चर्च आदि धार्मिक स्थानो पर हम तेल व् बाती वाला दीपक जलाते हैं,ये दीपक तो हमारी आत्मा की ज्योति का प्रतीक मात्र है। असली दीपक तो हमारे दोनों भवों के बीच तीसरे नेत्र पर जल रहा है। वो बिना तेल-बाती वाला चेतनता का दीपक हमारा वास्तविक अस्तित्व है। उसी चेतनता रूपी दीपक की धाराएं पूरे शरीर में फैलकर शरीर को जीवित और क्रियाशील बनाये रखतीं हैं।
ReplyDelete