अंतःकरण शुद्ध कैसे हो ? .....
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निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा|
परमात्मा की कृपा प्राप्त हो इसके लिए अंतःकरण की शुद्धि प्रथम आवश्यकता है| यही चित्त-वृत्तियों का निरोध और मन चंगा करने की बात का भावार्थ है|
.
मन ही हम मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है| घर में कोई अतिथि आने वाला हो तो हम घर की साफ़-सफाई करते हैं, यहाँ तो हम साक्षात् परमात्मा को निमंत्रित कर रहे हैं| भगवान तो सर्वत्र हैं , फिर भी दिखाई नहीं देते| इसका कारण हमारे मन रूपी अंतःकरण की मलिनता है| और कुछ भी नहीं|
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निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा|
परमात्मा की कृपा प्राप्त हो इसके लिए अंतःकरण की शुद्धि प्रथम आवश्यकता है| यही चित्त-वृत्तियों का निरोध और मन चंगा करने की बात का भावार्थ है|
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मन ही हम मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है| घर में कोई अतिथि आने वाला हो तो हम घर की साफ़-सफाई करते हैं, यहाँ तो हम साक्षात् परमात्मा को निमंत्रित कर रहे हैं| भगवान तो सर्वत्र हैं , फिर भी दिखाई नहीं देते| इसका कारण हमारे मन रूपी अंतःकरण की मलिनता है| और कुछ भी नहीं|
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अंतःकरण में परमात्मा की निरंतर उपस्थिति ही हमारे अंतकरण को शुद्ध कर सकती है, अन्य कोई उपाय नहीं है| लौकिक चेतना में हमारे समस्त कर्म हमारी कामनाओं द्वारा ही संचालित होते हैं, और हमारी कामनाओं का कारण हमारा अज्ञान है| हमें सच्चिदानंद और अपनी आनंदरूपता का बोध न होना ही हमारा अज्ञान है| जब तक अंतःकरण की शुद्धि नहीं होगी तब तक अज्ञान दूर नहीं हो सकता| यह अज्ञान ही हमारे सब बंधनों का कारण है|
अंतःकरण में परमात्मा की निरंतर उपस्थिति ही हमारे अंतकरण को शुद्ध कर सकती है, अन्य कोई उपाय नहीं है| लौकिक चेतना में हमारे समस्त कर्म हमारी कामनाओं द्वारा ही संचालित होते हैं, और हमारी कामनाओं का कारण हमारा अज्ञान है| हमें सच्चिदानंद और अपनी आनंदरूपता का बोध न होना ही हमारा अज्ञान है| जब तक अंतःकरण की शुद्धि नहीं होगी तब तक अज्ञान दूर नहीं हो सकता| यह अज्ञान ही हमारे सब बंधनों का कारण है|
पर अंतःकरण शुद्ध कैसे हो?
हम निश्चय कर के निरंतर प्रयास से परमात्मा को हर समय अपने ह्रदय में रखें, परमात्मा की ह्रदय में निरंतर उपस्थिति ही हमारे अंतकरण को शुद्ध कर सकती है, अन्य कोई उपाय नहीं है|
उस अवर्णनीय अनंत अगम्य अगोचर अलक्ष्य अपार प्रेमास्पद परमात्मा को नमन, जो मेरा अस्तित्व है, और मेरे ही नहीं, सभी के ह्रदयों में बिराजमान है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
हम निश्चय कर के निरंतर प्रयास से परमात्मा को हर समय अपने ह्रदय में रखें, परमात्मा की ह्रदय में निरंतर उपस्थिति ही हमारे अंतकरण को शुद्ध कर सकती है, अन्य कोई उपाय नहीं है|
उस अवर्णनीय अनंत अगम्य अगोचर अलक्ष्य अपार प्रेमास्पद परमात्मा को नमन, जो मेरा अस्तित्व है, और मेरे ही नहीं, सभी के ह्रदयों में बिराजमान है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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