Wednesday 12 July 2017

परमात्मा का निरंतर ध्यान ही हमारा वास्तविक Business है .....

परमात्मा का निरंतर ध्यान ही हमारा वास्तविक Business है .....
>
"Business" शब्द का सही अर्थ होता है .... "सरोकार", यानि वह कार्य जिसमें कोई स्वयं को व्यस्त रखता है| हिंदी में उसका अनुवाद .... "व्यापार" .... शब्द गलत है|
एक बार एक भारतीय साधू से किसी ने अमेरिका में पूछा .... Sir, What is your business ?
उस साधू का उत्तर था .... I have made it my business to find God.
हमारी व्यक्तिगत साधना हमारा सरोकार है, व्यापार नहीं| परमात्मा को पाने का सतत प्रयास ही हमारा वास्तविक Business है |
.
व्यवहारिक रूप से व्यापार तो कुछ लाभ पाने के लिए होता है| पर आध्यात्म में तो कुछ पाने के लिए हैं ही नहीं, यहाँ तो सब कुछ देना ही देना पड़ता है| यहाँ तो अपने अहंकार और राग-द्वेष को मिटाना यानि समर्पित करना पड़ता है| वास्तविक भक्ति अहैतुकी होती है| कुछ माँगना तो एक व्यापार है, प्रेम नहीं| परम प्रेम ही भक्ति है, भक्ति में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है| जहाँ कोई माँग उत्पन्न हो गयी वहाँ तो व्यापार हो गया|
.
योग साधना में ..... सुषुम्ना में जागृत पराशक्ति विचरण करते हुए हमें ही जगाती है | सभी चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रार में परमशिव तक जाकर बापस लौट आती है | इसके आरोहण और अवरोहण के साक्षी मात्र रहें, कर्ताभाव से मुक्त हों | गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र का जप गुरुप्रदत्त विधि से निरंतर चलता रहे | चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर रखते हुए ही ध्यानस्थ हो जाएँ |
.
हे अगम्य, अगोचर, अलक्ष्य, अपार, सर्वव्यापी परमात्मा परम शिव, हे नारायण, यह सर्वव्यापी हृदय ही तुम्हारा घर है| तुम्हारी सर्वव्यापकता ही मेरा हृदय और मेरा अस्तित्व है| तुम अपरिभाष्य और अवर्णनीय हो| तुम्हे भी नमन, और स्वयं को भी नमन ! ॐ ॐ ॐ ||
.
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||

>
"Business" शब्द का सही अर्थ होता है .... "सरोकार", यानि वह कार्य जिसमें कोई स्वयं को व्यस्त रखता है| हिंदी में उसका अनुवाद .... "व्यापार" .... शब्द गलत है|
एक बार एक भारतीय साधू से किसी ने अमेरिका में पूछा .... Sir, What is your business ?
उस साधू का उत्तर था .... I have made it my business to find God.
हमारी व्यक्तिगत साधना हमारा सरोकार है, व्यापार नहीं| परमात्मा को पाने का सतत प्रयास ही हमारा वास्तविक Business है |
.
व्यवहारिक रूप से व्यापार तो कुछ लाभ पाने के लिए होता है| पर आध्यात्म में तो कुछ पाने के लिए हैं ही नहीं, यहाँ तो सब कुछ देना ही देना पड़ता है| यहाँ तो अपने अहंकार और राग-द्वेष को मिटाना यानि समर्पित करना पड़ता है| वास्तविक भक्ति अहैतुकी होती है| कुछ माँगना तो एक व्यापार है, प्रेम नहीं| परम प्रेम ही भक्ति है, भक्ति में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है| जहाँ कोई माँग उत्पन्न हो गयी वहाँ तो व्यापार हो गया|
.
योग साधना में ..... सुषुम्ना में जागृत पराशक्ति विचरण करते हुए हमें ही जगाती है | सभी चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रार में परमशिव तक जाकर बापस लौट आती है | इसके आरोहण और अवरोहण के साक्षी मात्र रहें, कर्ताभाव से मुक्त हों | गुरु प्रदत्त बीज मन्त्र का जप गुरुप्रदत्त विधि से निरंतर चलता रहे | चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर रखते हुए ही ध्यानस्थ हो जाएँ |
.
हे अगम्य, अगोचर, अलक्ष्य, अपार, सर्वव्यापी परमात्मा परम शिव, हे नारायण, यह सर्वव्यापी हृदय ही तुम्हारा घर है| तुम्हारी सर्वव्यापकता ही मेरा हृदय और मेरा अस्तित्व है| तुम अपरिभाष्य और अवर्णनीय हो| तुम्हे भी नमन, और स्वयं को भी नमन ! ॐ ॐ ॐ ||
.
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment