मानसिक व्यभिचार से बचें .....
>
मन में बुरी बुरी कल्पनाओं का आना, और उन कल्पनाओं में मन का लगना मानसिक व्यभिचार है| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| यह मानसिक व्यभिचार आध्यात्म मार्ग की सबसे बड़ी बाधा तो है ही लौकिक रूप से भी समाज में दुराचार फैलाता है|
>
इससे कैसे बचें इसका निर्णय प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ले| आजकल किसी को कुछ कहना भी अपना अपमान करवाना है| समाज का वातावरण बहुत अधिक खराब है| बड़े बड़े धर्मगुरु भी अपनी बात कहते हुए संकोच करते हैं|
>
मन में बुरी बुरी कल्पनाओं का आना, और उन कल्पनाओं में मन का लगना मानसिक व्यभिचार है| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| यह मानसिक व्यभिचार आध्यात्म मार्ग की सबसे बड़ी बाधा तो है ही लौकिक रूप से भी समाज में दुराचार फैलाता है|
>
इससे कैसे बचें इसका निर्णय प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ले| आजकल किसी को कुछ कहना भी अपना अपमान करवाना है| समाज का वातावरण बहुत अधिक खराब है| बड़े बड़े धर्मगुरु भी अपनी बात कहते हुए संकोच करते हैं|
फेसबुक पर तो अपनी वॉल पर यह बात लिख सकता हूँ, पर किसी को कुछ कहने का
अर्थ है गालियाँ, तिरस्कार और अनेक अपमानजनक शब्दों को निमंत्रित करना| आज
के युग में व्यक्ति स्वयं को बचाकर रखे, और उपदेश ही देना है तो अपने
बच्चों को ही दे, और किसी को नहीं| आजकल तो स्वयं के बच्चे भी नहीं सुनते|
इतना लिख दिया यही बहुत है|
>
"तेरे भावें कछु करे भलो बुरो संसार |
नारायण तून बैठ के अपनों भवन बुहार ||"
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
>
"तेरे भावें कछु करे भलो बुरो संसार |
नारायण तून बैठ के अपनों भवन बुहार ||"
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
समाज की सब बुराइयों की जड़ हमारा मानसिक व्यभिचार है|
ReplyDeleteमानसिक व्यभिचार का अर्थ है मन में वासनात्मक बुरे विचारों और कामनाओं का आना और उन बुरे विचारों व कामनाओं में मन का लगना| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| सारे बलात्कार, अपहरण, चोरी, डकैती, लूट-खसोट, और बेईमानी का यही कारण है|
इसका निदान यही है कि बाल्यकाल से ही सबको अच्छे संस्कार दें, और किशोरावस्था से ही सब में भक्ति व ध्यान साधना में रूचि जागृत करें|