Wednesday, 12 July 2017

मानसिक व्यभिचार से बचें .....

मानसिक व्यभिचार से बचें .....
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मन में बुरी बुरी कल्पनाओं का आना, और उन कल्पनाओं में मन का लगना मानसिक व्यभिचार है| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| यह मानसिक व्यभिचार आध्यात्म मार्ग की सबसे बड़ी बाधा तो है ही लौकिक रूप से भी समाज में दुराचार फैलाता है|
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इससे कैसे बचें इसका निर्णय प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ले| आजकल किसी को कुछ कहना भी अपना अपमान करवाना है| समाज का वातावरण बहुत अधिक खराब है| बड़े बड़े धर्मगुरु भी अपनी बात कहते हुए संकोच करते हैं|
फेसबुक पर तो अपनी वॉल पर यह बात लिख सकता हूँ, पर किसी को कुछ कहने का अर्थ है गालियाँ, तिरस्कार और अनेक अपमानजनक शब्दों को निमंत्रित करना| आज के युग में व्यक्ति स्वयं को बचाकर रखे, और उपदेश ही देना है तो अपने बच्चों को ही दे, और किसी को नहीं| आजकल तो स्वयं के बच्चे भी नहीं सुनते| इतना लिख दिया यही बहुत है|
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"तेरे भावें कछु करे भलो बुरो संसार |
नारायण तून बैठ के अपनों भवन बुहार ||"
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. समाज की सब बुराइयों की जड़ हमारा मानसिक व्यभिचार है|
    मानसिक व्यभिचार का अर्थ है मन में वासनात्मक बुरे विचारों और कामनाओं का आना और उन बुरे विचारों व कामनाओं में मन का लगना| यह मानसिक व्यभिचार ही भौतिक व्यभिचार में बदल जाता है| सारे बलात्कार, अपहरण, चोरी, डकैती, लूट-खसोट, और बेईमानी का यही कारण है|

    इसका निदान यही है कि बाल्यकाल से ही सबको अच्छे संस्कार दें, और किशोरावस्था से ही सब में भक्ति व ध्यान साधना में रूचि जागृत करें|

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