Wednesday, 12 July 2017

परमात्मा की कृपा ही सार है, बाकी सब निःसार है .....

परमात्मा की कृपा ही सार है, बाकी सब निःसार है .....
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कर्मफल और संस्कार ये दोनों ही अतीन्द्रिय हैं ये भगवान की कृपा से ही समझ में आते हैं| हम जैसा सोचते हैं, जैसे वातावरण में व जैसे लोगों के साथ रहते हैं, और जैसा खाते-पीते हैं, वैसे ही संस्कार पड़ते हैं|
हमारे विचार ही हमारे कर्म हैं, जिनका फल भुगतना ही पड़ता है| प्रकृति अपना कार्य सतत निष्पक्ष भाव से करती रहती है| प्रकृति के नियमों को न समझना हमारी ही कमी है इसके लिए भगवान को दोष देना अनुचित है| हाँ, भगवान की शरण लेने से और अहंकार का त्याग करने से कर्मफलों से मुक्ति मिल सकती है| हमारा स्वभाव भी हमारे कर्मों का ही फल है| यदि स्वभाव प्रकृति की और है तो वह बंधन में डालता है, यदि परमात्मा की ओर है तो स्वतंत्रता दिलाता है| वास्तविक स्वतन्त्रता परमात्मा में ही है| अहंकार से मुक्ति परमात्मा की कृपा से ही मिलती है| मोक्ष कहो या मुक्ति .... ये सब भगवान की कृपा से ही प्राप्त होते हैं, न कि निज प्रयास से|
जितना मेरे सामर्थ्य में था उतना ही लिख पाया हूँ, बाकी मेरे सामर्थ्य से परे है| परमात्मा की कृपा सब पर बनी रहे|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. मधुमक्खियों के झुण्ड की तरह अनंत चिंताएँ, कामनाएँ, वासनाएँ व अन्य विकृतियाँ नित्य मुझ पर आक्रमण करती हैं|

    पर हे परमशिव, आपकी कृपा निरंतर मेरी रक्षा करती है| आप ही मेरा कवच हो| अब मैं तो हूँ ही नहीं, सिर्फ आप ही आप हो| आप का कौन क्या बिगाड़ सकता है?

    हर हर महादेव ! ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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