Wednesday, 12 July 2017

सभी मित्रों से मेरी व्यक्तिगत प्रार्थना :---

सभी मित्रों से मेरी व्यक्तिगत प्रार्थना :---
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(१) रात्री में शीघ्र सो जाएँ| सोने से पूर्व परमात्मा का गहनतम ध्यान कर के जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर ही सोएँ| अपनी सारी चिंताएँ जगन्माता को सौंप दें|

(२) प्रातः परमात्मा की चेतना में ही उठें| हरिस्मरण करते हुए थोड़ा जल पीकर शौचादि से निवृत होकर कुछ मिनट तक कुछ प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम व उज्जयी आदि, और शरीर की क्षमतानुसार कुछ आसन जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, आदि कर के ऊनी आसन या कुशासन पर पूर्व या उत्तर की और मुँह कर के कमर सीधी रखते हुए स्थिर होकर सुख पूर्वक सुखासन/पद्मासन/सिद्धासन जैसे किसी आसन में बैठ जाएँ| यदि सीधे बैठने में कठिनाई हो तो नितम्बों के नीचे कोई छोटा तकिया लगा लें| शिवनेत्र होकर यानि दोनों आँखों के गोलकों को बिना किसी तनाव के भ्रूमध्य के निकटतम लाकर आँखें बंद रखते हुए दृष्टी भ्रूमध्य पर ही निरंतर रखें| पूर्ण भक्ति (परम प्रेम) के साथ अपने गुरु व गुरु-परम्परा को प्रणाम करते हुए अपनी अपनी गुरुपरम्परानुसार ध्यान करें|

(३) प्रातः 03:30 से 05.30 तक मैं भी आपके साथ साथ लगातार ध्यान करूँगा आप मुझे उस समय अपने साथ ही पाओगे| आपका साथ मुझे अत्यधिक संबल देगा| आप मेरा साथ दोगे तो यह आपकी मुझ पर बड़ी कृपा होगी और आप पर परमात्मा के आशीर्वादों की बड़ी वर्षा होगी|

(४) ध्यान का समापन शान्तिमंत्र और समष्टि के कल्याण की कामना के साथ करें| ध्यान के बाद कुछ देर तक उठें नहीं| अपने इष्टदेव के मन्त्र का जप करते रहें||

(५) उसके उपरांत प्रातः भ्रमण, व्यायाम आदि करें | ध्यान से पूर्व यदि स्नान आदि न भी कर सकें तो कोई बात नहीं, भगवान शिव को स्मरण कर चुटकी भर भस्म अपने सिर पर छिड़क लें और ध्यानस्थ हो जाएँ|

ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

  1. भगवान ने हमें रात्रि सहित एक पूरे दिन में २४ घंटों का समय दिया है| कम से कम उसका आठवाँ भाग यानि तीन घंटे तो हमें प्रतिदिन निष्काम भाव से उनके ध्यान में बिताने ही चाहियें| यह हम न भूलें कि हमारे ह्रदय में जब तक वे धड़क रहे हैं तभी तक का जीवन है| जिस क्षण वे धड़कना बंद कर देंगे उसके बाद हमारा कुछ भी नहीं रहेगा और एक अज्ञात में जाने को हम बाध्य हो जायेंगे| उस अज्ञात में भी कोई शाश्वत साथी तो होगा ही| वे शाश्वत साथी परमात्मा ही हैं| अभी से उन का साथ हो जाए तो कितना अच्छा हो !
    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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  2. सबसे बड़ी सेवा जो हम अपने स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व की कर सकते हैं, और सबसे बड़ा उपहार जो हम किसी को दे सकते हैं, वह है ..... "आत्मसाक्षात्कार" |

    "निरंतर प्रभु की चेतना में स्थिर रहें, यह बोध रखें कि हमारी आभा और स्पंदन पूरी सृष्टि और सभी प्राणियों की सामूहिक चेतना में व्याप्त हैं, और सब का कल्याण कर रहे हैं|"

    "प्रभु की सर्वव्यापकता हमारी सर्वव्यापकता है, सभी प्राणियों और सृष्टि के साथ हम एक हैं| हमारा सम्पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम पूरी समष्टि का कल्याण कर रहा है| हम और प्रभु एक हैं|"

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