निजी क्षेत्र में भी समान सुविधाओं के साथ सरकारी कर्मचारियों के समान वेतन वृद्धि होनी चाहिए ....
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सरकारी कर्मचारियों के जो वेतन और भत्ते बढ़ रहे हैं, उसी अनुपात में निजी क्षेत्र में भी समान सुविधाओं के साथ वेतन वृद्धि होनी चाहिए|
निजी क्षेत्र में इतना भयंकर शोषण है कि सरकारी कर्मचारी को जो वेतन मिलता है उससे एक चौथाई में निजी क्षेत्र का एक कर्मचारी किसी भी सरकारी कर्मचारी से चौगुना कार्य करता है|
निजी क्षेत्र में आजकल कर्मचारियों को दैनिक वेतन पर रखते हैं| सप्ताह में सात दिन कार्य, न तो कोई छुट्टी मिलती है और न कोई भविष्य निधि| जरा सा विरोध करते ही बाहर निकाल देते हैं|
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बार बार हड़ताल कर के सरकारी कर्मचारी वेतनवृद्धि के लिए सरकार को बाध्य कर देते हैं| बढती हुई मँहगाई का यह भी एक कारण है| निजी क्षेत्र में कोई हडताल की सोच ही नहीं सकता| ये भी देश के नागरिक हैं| इनके साथ भेदभाव क्यों?
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बिना घूस दिए किसी भी सरकारी कार्यालय में कुछ भी कार्य नहीं होता| जितना वेतन सरकारी कर्मचारियों को जिस काम का मिलता है क्या वे सचमुच उतना काम करते हैं? ईमानदार सरकारी कर्मी बहुत कम हैं, और उनसे अफसर भी खफा रहते हैं, उन पर काम का भी बोझ बहुत ज्यादा होता है|
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एक सामान्य नागरिक के लिए "सरकार" उच्च शासक वर्ग नहीं, बल्कि एक पुलिस का सिपाही और दफ्तर का बाबु होती है| देश को धर्म-परायण या ईमानदार तभी कहा जाएगा जब पुलिस का हर सिपाही और दफ्तर का हर बाबु पूर्ण ईमानदार होगा|
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सरकारी कर्मचारियों के जो वेतन और भत्ते बढ़ रहे हैं, उसी अनुपात में निजी क्षेत्र में भी समान सुविधाओं के साथ वेतन वृद्धि होनी चाहिए|
निजी क्षेत्र में इतना भयंकर शोषण है कि सरकारी कर्मचारी को जो वेतन मिलता है उससे एक चौथाई में निजी क्षेत्र का एक कर्मचारी किसी भी सरकारी कर्मचारी से चौगुना कार्य करता है|
निजी क्षेत्र में आजकल कर्मचारियों को दैनिक वेतन पर रखते हैं| सप्ताह में सात दिन कार्य, न तो कोई छुट्टी मिलती है और न कोई भविष्य निधि| जरा सा विरोध करते ही बाहर निकाल देते हैं|
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बार बार हड़ताल कर के सरकारी कर्मचारी वेतनवृद्धि के लिए सरकार को बाध्य कर देते हैं| बढती हुई मँहगाई का यह भी एक कारण है| निजी क्षेत्र में कोई हडताल की सोच ही नहीं सकता| ये भी देश के नागरिक हैं| इनके साथ भेदभाव क्यों?
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बिना घूस दिए किसी भी सरकारी कार्यालय में कुछ भी कार्य नहीं होता| जितना वेतन सरकारी कर्मचारियों को जिस काम का मिलता है क्या वे सचमुच उतना काम करते हैं? ईमानदार सरकारी कर्मी बहुत कम हैं, और उनसे अफसर भी खफा रहते हैं, उन पर काम का भी बोझ बहुत ज्यादा होता है|
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एक सामान्य नागरिक के लिए "सरकार" उच्च शासक वर्ग नहीं, बल्कि एक पुलिस का सिपाही और दफ्तर का बाबु होती है| देश को धर्म-परायण या ईमानदार तभी कहा जाएगा जब पुलिस का हर सिपाही और दफ्तर का हर बाबु पूर्ण ईमानदार होगा|
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