भगवान की भक्ति हमारा धंधा हो ---
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भगवान की भक्ति - कोई नौकरी नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समर्पण और पूर्णकालिक प्रतिदिन २४ घंटे का व्यापार/धंधा है, जिसका एकमात्र लक्ष्य भगवान की प्राप्ति है। नौकरी करने वाला कभी खरबपति धनवान नहीं बन सकता। खरबपति धनवान बनने के लिए उसे व्यापार/धंधा ही करना होगा।
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एक नौकरी करने वाला दिन में कम से कम आठ घंटे परिश्रम करता है, और महीने के अंत में छोटा मोटा वेतन पाकर प्रसन्न हो जाता है। कभी कभी वेतन बढ़वाने के लिए हड़ताल पर चला जाता है। पर व्यापारी न तो कभी हड़ताल पर जाने की सोच सकता है, और न सिर्फ कुछ घंटे ही काम करने की। वह तो चौबीस घंटे अपने व्यापार की ही सोचता है, सोते समय भी वह व्यापार के स्वप्न लेता है, जागते समय भी व्यापार का ही चिंतन करता है, और मिलना-जुलना भी उन्हीं से करता है जो उसके व्यापार में सहायक हैं। फालतू लोगों को वह अपने पास भी नहीं फटकने देता। यही स्थिति आध्यात्म में है। भगवान को पाने की नौकरी करने वालों से भगवान को पाने का धंधा यानि व्यापार करने वाले शीघ्र सफल होते हैं। अतः भगवान को पाना अपना धंधा यानि पूर्णकालिक व्यापार बना लेना चाहिए।
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अन्धकार कभी सूर्य तक नहीं पहुँच सकता, वैसे ही जिज्ञासामात्र या सिर्फ पुस्तकें पढने मात्र से कोई भगवान को नहीं पा सकता। उसे तो एक सफल व्यापारी की तरह बनाना होगा।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१ जुलाई २०२१
ईश्वर की प्राप्ति -- एक पूर्णकालिक व्यवसाय यानि धंधा है। जैसे एक व्यापारी दिन-रात अपने धंधे की ही सोचता है, वैसे ही यह भी एक व्यापार है।
ReplyDeleteवैराग्य का संयोग न होने पर घर-परिवार-समाज में रहना इस जन्म का प्रारब्ध है। जीवन में तृप्ति व संतुष्टि का होना, और किसी से किसी अपेक्षा का न होना, -- समर्पित जीवन का लक्षण है। समाज में रहते हैं तो निजी जीवन में कुछ संस्थाओं व मंचों से भी जुड़ना पड़ता है। सारा जीवन परमात्मा की अभिव्यक्ति हो, यही ध्येय है। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
४ जुलाई २०२१