भगवान से शिकायत ---
.
आध्यात्म में भगवान से शिकायत होना -- इस बात का संकेत है कि मेरे समर्पण में कहीं न कहीं, कोई न कोई, कमी रह गई है। मैं अपनी पीड़ा अन्य किसी से व्यक्त नहीं कर सकता, और उन्हें भूल भी नहीं सकता, -- बस यही शिकायत है मुझे भगवान से।
.
अन्य कोई है भी तो नहीं, जिस से अपनी बात कह सकें। शिकायत होने का अर्थ है कि यथासंभव पूर्ण प्रयासों के पश्चात भी कहीं न कहीं हमारे समर्पण में कमी है। लेकिन सारी कमियाँ भी उन्हीं की है।
.
भगवान ने कह तो दिया कि --
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते"॥१८:५३॥
अर्थात् -- अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है।
.
जब उनके मार्ग पर चलते हैं तो बाधा बनकर भी तो वे ही समक्ष आ जाते हैं। अब कोई फर्क नहीं पड़ता, कितनी भी बाधाएँ आयें, कितनी भी शिकायतें हों, प्रेम और समर्पण तो उन्हीं को रहेगा। उन ब्रह्म से पृथक कोई भी अन्य नहीं है, मैं भी नहीं। सब कुछ तो वे ही हैं। उन की शिकायत अब उनको ही करेंगे। सबके हृदय में कुछ ऐसी घनीभूत पीड़ायें होती हैं, जिन्हें कोई मनुष्य नहीं समझ सकता। वे सब भगवान को समर्पित कर देनी चाहियें।
🔥🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹🔥
कृपा शंकर
२२ जून २०२१
No comments:
Post a Comment