Thursday, 29 July 2021

कुछ भी हो, भगवान का आश्रय तो लेना ही पड़ेगा ---

 कुछ भी हो, भगवान का आश्रय तो लेना ही पड़ेगा ---

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जहाँ स्वयं का बल नहीं चलता, वहाँ भगवान की शरण लेनी ही पड़ेगी। यह त्रिगुणात्मक प्रकृति बड़ी विकट है, लेकिन इसके नियामक तो भगवान स्वयं हैं, वे ही कृपा कर के हमें प्रकृति के बंधनों से मुक्त कर सकते हैं। भगवान कहते हैं --
(१) "ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया॥१८:६१॥"
अर्थात् - हे अर्जुन (मानों किसी) यन्त्र पर आरूढ़ समस्त भूतों को ईश्वर अपनी
माया से घुमाता हुआ (भ्रामयन्) भूतमात्र के हृदय में स्थित रहता है॥
(२) "उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥"
अर्थात् - (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! स्वामी श्री रामजी सबको कठपुतली की तरह नचाते हैं।
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मेरे अपने निजी जीवन में भगवान ने मेरी रक्षा मेरे संस्कारों के कारण ही की है। माँ-बाप ने बचपन से ही भक्ति के संस्कार दिये थे, उन्होने ही मुझे सदा बचाया। मेरे सामने पतन के सारे मार्ग खुले हुए थे। कोई ऐसी बुराई नहीं है, जो मेरे समक्ष नहीं थी। मुझे अनेक म्लेच्छ लोगों के मध्य रहना, और अनेक म्लेच्छ देशों में जाना पड़ा है।
जहाँ मेरा जन्म हुआ, वह नगर और समाज भी बहुत अधिक महा तामसी था, और अब भी है। वर्तमान में अपने प्रारब्धानुसार वहीं रहना पड़ रहा है। जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ तमोगुण अधिक है, फिर कुछ-कुछ रजोगुण है; सतोगुण तो बहुत दुर्लभ है। मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा, यह मेरा प्रारब्ध, और एक वास्तविकता है।
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मेरी बात कोई सुने या न सुने, लेकिन सत्य तो कहूँगा ही। यदि हम चाहते हैं कि हमारी संस्कृति और धर्म की रक्षा हो तो --
(१) संस्कृत भाषा हमें बचपन से ही अपने बालकों को सिखानी पड़ेगी। भविष्य में यही हमारी सदा रक्षा करेगी।
(२) आध्यात्मिक संस्कार अपने बालकों में देने पड़ेंगे।
(३) समाज में ब्राह्मणों में ब्राह्मणत्व के संस्कारों को पुनर्जागृत करना होगा। ब्राह्मणों को निःशुल्क गुरुकुल शिक्षा, और उनकी आजीविका की व्यवस्था करनी होगी। ब्राह्मण धर्म बचेगा तभी सनातन धर्म बचेगा; अन्यथा समाज और राष्ट्र नष्ट हो जाएँगे।
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आध्यात्म का पश्चिमीकरण हो रहा है, यह बहुत अधिक घातक है। हमें अपनी प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। मुझे पता है कि मेरी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज़ है जिसे कोई नहीं सुनेगा। लेकिन फिर भी मुझे जो सत्य लगता वह तो कहूँगा ही।
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मैंने पूरे विश्व का भ्रमण किया है (दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप व पूर्वी अफ्रीका को छोड़कर)। रूस में दो वर्ष रहा हूँ, पूरे यूरोप, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, चीन, दोनों कोरिया, सिंगापूर, मलयेशिया, इन्डोनेशिया, थाइलेंड, आदि और अनेक मध्यपूर्व व पश्चिमी एशिया के मुस्लिम देशों में भी खूब भ्रमण किया है।
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अतः अपने पूरे अनुभव के साथ कह रहा हूँ कि "सत्य सनातन धर्म", और "संस्कृत भाषा" में ही भारत का भविष्य है। ये ही भारत की अस्मिता हैं, और इन्हीं के कारण भारत, भारत है।
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सांसारिक दृष्टि से असहाय हूँ, लेकिन परमात्मा में मेरी पूर्ण श्रद्धा है। अब उन्हीं का आश्रय ले रहा हूँ। मेरी श्रद्धा, एक सत्यनिष्ठ धर्मसापेक्ष भारत का निर्माण करेगी, जिसकी राजनीति सत्य सनातन धर्म होगी। असत्य का अंधकार स्थायी नहीं हो सकता। आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म, और कर्मफलों के सिद्धान्त सत्य हैं। सब कुछ भगवान को समर्पित है। मेरा अपना कुछ भी नहीं है। जो इस जन्म में नहीं कर पाया, वह अगले जन्मों में करूंगा।
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जीवन में सच्चिदानंद भगवान की प्राप्ति सभी को हो। सभी का कल्याण हो।
"तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।
विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुगं स्मरामि॥"
ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
३० जून २०२१

1 comment:

  1. "तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव।
    विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुगं स्मरामि॥"
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    अर्थात् - वह लग्न (मुहूर्त ) शुभ होता है, वह दिन मंगलकारी होता है, उसी लग्न में तारे, चन्द्र, विद्या और देवताका बल होता है जिस समय हम लक्ष्मीपति श्रीविष्णु का स्मरण करते हैं।
    That is the best lagna, the auspicious day; it has the strength of stars and the strength of the Moon. It has knowledge and blessings of Gods when your mind is at the feet of Lakshmipathi.

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