Thursday, 29 July 2021

हम जन्मजात ऋणों से उऋण हों? ---

 हम जन्मजात ऋणों से उऋण हों? ---

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जब हम जन्म लेते हैं, उसी समय से हम पर पितृऋण, ऋषिऋण एवं देवऋण होता है, जिन से हमें उऋण होना ही पड़ता है। माता-पिता की सेवा कर के पितृऋण, ऋषियों द्वारा बताई गई साधना कर के ऋषिऋण, और देवताओं का तर्पण या साधना कर के देवऋण चुकाया जाता है।
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उपरोक्त के अतिरिक्त एक ऋण और भी हम पर है, वह है राष्ट्रऋण। जिस समाज व राष्ट्र में हमने जन्म लिया है, उस समाज व राष्ट्र के उत्थान का सेवाकार्य कर के ही हम इस ऋण से मुक्त हो सकते हैं। वर्तमान समय में भारत की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सब से बड़ी समाज व राष्ट्र की सेवा, जो मेरी दृष्टि में हो सकती है, वह है -- सामूहिक साधना द्वारा हम एक क्षात्रतेज और ब्रह्मतेज को प्रकट करें।
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क्षात्रतेज तो तब प्रकट होगा जब हम समाज को हीनभाव से मुक्त कर, निज-गौरव व स्वाभिमान को जागृत कर आत्म रक्षार्थ संगठित करें। ब्रह्मतेज तब जागृत होगा जब हम निज जीवन और समष्टि में आध्यात्मिक साधना द्वारा परमात्मा को व्यक्त करें।
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किसी भी बात को पूर्णता तक पहुंचाने हेतु ईश्वर के साथ में होने की आवश्यकता होती है। अतः साधना द्वारा ईश्वरप्राप्ति तो हमें करनी ही होगी। आत्मविश्वास, सब प्रकार का बल, सामर्थ्य, व वाणी में चैतन्य -- ईश्वर की कृपा से ही आता है।
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कोई मेरा साथ दे या न दे, यह शरीर रहे या न रहे, लेकिन मेरा ही नहीं, लाखों लोगों का पूर्णतः विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है कि हमारे राष्ट्र भारत की अस्मिता -- "सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा व वैश्वीकरण हो", और "भारत -- अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ एक अखंड सत्यनिष्ठ/धर्मनिष्ठ हिन्दू राष्ट्र बने"।
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वर्तमान भारत की स्थिति बहुत खराब है। ऐसी स्थिति अनेक बार हुई है, लेकिन ईश्वर ने सदा भारत की रक्षा की है। हम एक ध्येय से संगठित हों, और सब तरह के जन्मजात ऋणों से मुक्त हों। यह करने से हमें कोई भी नहीं रोक सकता, यदि मन में दृढ़ संकल्प हो। यही सबसे बड़ी सेवा होगी जो हम कर सकते हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२५ जून २०२१

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