Thursday, 29 July 2021

भगवान को पाने का प्रयास - क्या हमारा "अहंकार" है? ---

 भगवान को पाने का प्रयास - क्या हमारा "अहंकार" है? ---

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मेरा उत्तर है - नहीं। भगवान हमें - (१) निर्द्वन्द्व, (२) नित्यसत्त्वस्थ, (३) निर्योगक्षेम और (४)आत्मवान् बनने का आदेश देते हैं -- "निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।" ये तो अहंकार से मुक्ति के उपाय हैं, जिनसे हम उन्हें पा सकते हैं।
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अब इन के शब्दार्थों पर विचार कर लेते हैं --
(१) निर्द्वन्द्व - यानि सुखदुःख के हेतु जो परस्पर विरोधी युग्म हैं, उनका नाम द्वन्द्व है, उनसे रहित हों।
(२) नित्यसत्त्वस्थ - यानि सदा सत्त्वगुण में स्थित रहें।
(३) निर्योगक्षेम - यानि योगक्षेम को न चाहने वाले हों। अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करने का नाम योग है, और प्राप्त वस्तु के रक्षण का नाम क्षेम है।
(४) आत्मवान - यानि सावधान व जागरूक होकर आत्मा में स्थित रहें।
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उपरोक्त गुणों को कैसे प्राप्त करें? एक ही उपाय है, और वह है - "गुरु प्रदत्त साधना।" गुरु महाराज ने जो साधना हमें दी है, उसको हम अपने पूरे "प्राण", पूरी "सत्यनिष्ठा" और पूरी "भक्ति" (परमप्रेम) से करें। सत्यनिष्ठा और परमप्रेम जब हमारे में होंगे, तब भगवान की प्राप्ति में समय नहीं लगेगा। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०२१

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