जो कुछ भी हमें प्राप्त होता है, यहाँ तक कि परमात्मा की प्राप्ति भी "श्रद्धा और विश्वास" से ही होती है| रामचरितमानस के आरंभ में मंगलाचरण में ही बताया गया है .....
"भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ| याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्||"
"वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्| यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते||"
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हमारी श्रद्धा और विश्वास ही भवानी शंकर हैं| कोई भी साधना श्रद्धा और विश्वास के कारण ही फलवती होती है| बिना श्रद्धा और विश्वास के किसी भी मंत्र के जप का, यहाँ तक कि गायत्री मंत्र के जप का भी फल नहीं मिलता है| भगवान कभी किसी की कामनाओं की पूर्ति नहीं करते| कामनाओं की पूर्ती स्वयं की श्रद्धा और विश्वास से ही होती हैं, किसी देवी-देवता, पीर-फ़कीर, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं|
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सारा ब्रह्मांड भगवान की विभूति है| हमें ध्यान भी भगवान के विराट रूप का ही करना चाहिए| यह भाव रहना चाहिए कि यह समस्त ब्रह्मांड "मैं" हूँ, यह भौतिक देह नहीं| रामचरितमानस में बताए हुए सारे प्राणी .... "तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें" कैसे भी हों, हमारी चेतना के ही भाग हैं, हमसे पृथक नहीं|
भगवान की श्रद्धा और विश्वास फलवती होंगे तभी सारे आध्यात्मिक रहस्य भी अनावृत हो जाएँगे जो मनुष्य की बुद्धि से नहीं हो सकते|
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परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन| ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
१० जून २०२०
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पुनश्च :---
जो कुछ भी जीवन में हमें मिलता है, वह अपनी श्रद्धा और विश्वास से ही मिलता है। बिना श्रद्धा-विश्वास के कुछ भी नहीं मिलता।
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।४:३९॥" (गीता)
"भवानी-शंकरौ वन्दे श्रद्धा-विश्वास रूपिणौ ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम् ॥" (रामचरितमानस)
मनोकामनाओं की पूर्ति स्वयं के श्रद्धा-विश्वास से ही होती हैं, किसी देवी-देवता, संत, पीर-फ़कीर द्वारा, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं.
भगवान कभी किसी की इच्छा यानि मनोकामनाओं की पूर्ति नहीं करते। हमारी श्रद्धा और विश्वास ही हमारी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
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